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जैन साहित्य संशोधक-परिशिष्ट.
[खंड १ उ० श्री देवभद्रना शिष्यने दीधा । ते शिष्य सीता सुउपदेशे करी संसार थकी उधरता, मेवाडदेशि विचरता, नगरे शालाधारक हूई रह्या ! श्री सूरी आहड नगर थकी अनुकमि वीरशालि गामें आयु पर्यंत आंचिल व्रत विहार करता श्री नडलाइ नगरि देव दर्शन करी श्री कारक, तपागल सामाचारी धारक, पुनः श्री तपागल सीरोही नगरई चौमासि रह्या । तिहाँ उ. श्री देव- बिरुद धारक, श्री जगतूंचंद्र सूरीनी वि० सं० १२९७ कुशलना वर्ग हूओ। तिहां थक्री श्री जगचंद्र सूरी १ वर्षि स्वर्ग हूओ । पुनः की दृश श्री गुरु ? श्री देविंद्रसूरी २ ए. विहूं गुरुभाई विहार करता गुजराति श्रीगुरु घट दर्शनकारा मुक्ति दान धवलाकि नगरि च उमासि रह्या । एहरि तिहां माणसा
दूरी कृत दूधण गुण निधान गांन वास्तव्य आ० वृ. आंब गोत्रि सा• विजयचंद्र, युग पद धारक जयतीशः राजा श्री वीरधवलने गामनी उत्पत्ती खपती लषतो भवि मानव कुवलय भामिनीशः ।। १ ।। कोईक मोटि अपराधि राजाई कारागारि दीधा । ते कि
४४ तपट्टे श्री देवेंद्र सूरी। मही काढई नही । तिवारे विजयचंदई श्री देविंद्र सूरिने लघु गुरु भाई श्रीविजयचंद्र सूरी २। ए बहु मेवाड देश कह्यो जे मुझन कारागार थकी कढावओ तो हूँ तुम्हारा थका विहार करता मालवई उन्जेणी नगरई श्री अवंती सिध्य थाउं । तिवारि श्री देविंद्र सूरीई मत्री वस्तुपालन पासनी यात्रा कधी तिहां श्री देवद्रि सूरी श्री विजयचंद्र कही सा० विज (७६-१) यचंदने बंदीषांणांथी सुरीनी गुजराति विहार करवानी आज्ञा कीधी । तिवारी कढाव्यो । तिणे श्री जगत्चंद्र सूरी हस्ते दिक्षा लीधी। श्री विजयचंद्र सूरी गुज्जराति गया | श्री खभायति रु. विजयचंद्रनाम दीवू | पिण लिगारेक अभिमान आवी रह्या । अनी श्री देवेंद्र सूरी मासका उ(७७.१) धरई । चउमासी संपूर्णि धवल कई थकी श्री जगतचंद्रई जेणी रह्या । तिहां खंडरवाल ज्ञाति सा. जिनचंद्र तेहना विहार कीधा । मेवाडिं धावल नगरि आव्या । तिहां रु० पुत्र वीरधवल १ अनि भिमसिंह २ ए बिहुं बंधव विजयचंद्रने उत्तम पात्र जाणी श्री जगतचंद्रि वि० सं० प्रति पाणिग्रहणनई ओत्सवि श्री गरुई धर्मोपदेश देइ १२८८ बर्षि आ० पद देइ श्री विजयचंद्र सूरी नाम वि० सं० १२९८ वर्षि बि माइने दीक्षा देइ दीधी। श्री जगत्चंद्र सूरी ? श्री देवेंद्र सूरी २ आ० वीपर्षि १ अनि भीमर्षि २ ए नाम दीधा । तिहां थकी श्री विजयचंद्रसूरी ३. विहार करता कउआणा नगरे हरीयाणी नगरी चउमासे रही श्री पावकाचलि संभव चौमासि रह्या | तिहां थकी मोसिल गामि आव्या । देव वंदी श्री देविंद्र सुरी कप्पटवाणिज नगरी आव्या तिहां सात दिगंबराचार्यस्युं जैन वाद हुओ। श्री श्रुत- । हवि श्री खंभायत नगरें श्री विजयचंद्र सूरी देवीनी कृपा यकी तेहनें जीत्या । एतलें जैन शास्त्रने रह्या ,, तिणे श्री देवेंद्र सूरीनी आज्ञा विना बादि हान्य नहिं, तिवारी हीरानी परे निर्मल अभेद्य क्रियाई शिथिल साधु प्रति पं० उ० दघी लोक ' हीरला श्री जगच्चंद्र सूरी' एहवी कीर्ति दिक्षादिक दिई स्व आज्ञाई यत्ने किवा अनि गृहस्थने कही । तिहां नाणावाल, कारंटक, पिपलीक, वडगछ, आवर्जन निमित्त प्रतिक्रमणादि क्रिया करता हुवा । पुनः राजगह, चंद्रगछ इत्यादि केतलाक शाषाधारीइं श्री मालवई थकी आवी मोटी पोशाल ते श्रावकने उपाश्रयई सूरी हस्ते क्रिया उद्धरी तेहनें स्वगछे लीधा । तिहां श्री एकवाति रह्या । किहांई विहार न कीधो, नगरमां मास सूरीइं वंदणक, बिवंदणक, प्रतिक्रमणा (७६-२)दि कल्पपि ण न साचव्यो । एहवओ गछना साधु मुष थकी प्रमुष स्वगनी सामाचारी थाप।। ते पहिलो आव- मांभली श्री दविंद्र सरी कर्पट वाणीज्य नगर थकी शक लगाणि किया करता, श्री सूरी आंधित तपनी पनि श्री गण याताई आया। निनारी श्री विजआराधन करता, निर्मल तपाचार धरता. योग्य जीवन यचंद सरी तथा तहनी । ७७-२) पाना साध मत्स
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