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अंक ३]
वीर वंशावलि. चंदन चीर कपूर मघि कोडी बहूत्तरी कप्पडे । पछी सत्तर सय अनि पंचावन वर्ष गयई हूं, पुनः पोरवाड वंश श्रवणे सुण्यो श्रीवस्तुपाल महिमंडळे || वि० सं० १२८५ वर्षे वैशाष सित त्रीजने दीनी
इत्यादि अनेक सृकृतीकारक श्री भुवनचंद्र सूरी उप- राऊल श्री जयतसिंह दत्त तपा गछ बिरुद श्री जगचंद्र देशात् श्री अंबिका कवडयक्ष सानिधकारक, प्रागवाट सूरीने हूओ | एतलई प्रथम पट्टधर श्री सुधा स्वामी लधुशाषा विरुदधारक एवं वर्ष १८ सुकृत कीधु । सर्व थकी निग्रंथ गछ एहवू नाम प्रथम कहिवाणुं, ते आठ आयु वर्ष ३६ संपूर्णी तेहनो वि० सं० १२९८ वर्षि पाट लगई ए बिरुद कहिवांणा १. अंकेवालीया गामि मं. श्री वस्तुपाल स्वर्ग हूओं १ तिवार पछी नवमई पाटिं श्री सुस्तित स्वामी अनि पुनः वि० सं० १३०२ वर्षि लबुभाई मं. तेजपाल सप्रतिबुद्ध स्वामी ए. बिहूं गुरु भाइई काकंदी नगरीई (७४-१ ) चंद्राणा गामि स्वर्ग हुओ।२। कोटी वार सूरी मंत्रनो स्मरण कीधा, तेह थकी बीजं नाम
इति मं० वस्तुपाल तेजपाल संबंध । कोटिक एहवं गठ कहिवाणु, ते गछछ पाट लग
४४ तत्पट्टे श्री जगच्चंद्र सूरी। (७५-१ ) ण बिरुद जांणवो २. श्री गुरु जायजीव आंबील तप अभिग्रहना धारक थका मे तिवार पनरमे पाटि श्री वज्रसेन सूरीनो शिष्य श्री वाड भूमंडळी विरहता श्री आहाडनगरि आव्या । एहवइं चंद्र सूरी हूया तेह थकी चंद्र गछ ए बीजो ३. गछना साधु समुदाय प्रतई क्रिया आचारि शिथलपणि जांणी पुनः सोलमे पाटि सामंतभद्र सूरी ते निस्पृहपणा पहिला दीघा में श्री आ० सारदाई वर तेहनी कृपा थकी थकी बननें विषे रहि । ते सूरी थकी वनवासी गछ ए पुन: श्री देवभद्रनो साहज्य पामी उग्र कीयानो आरंभ श्री चाधु नाम ४. ते सोल । आहड नगरई कीधा । तिहां श्री सुरी वर्षा कालि तिवार पछी तेत्रीसभ पाटें सर्वदेवसूरीने उद्योतन चउमासि रद्या । ए ले जावजीव आंबील तप करतां गुरुई आवु तलहटी नई वने वड वृक्ष हेठि आठ वर्ष बार हूया । तिवारइं चित्रोड पति राउल श्री जय- शिष्यने सूरी पदे कीधा तेंहथी वह गछ एहवू पांच सिंह णा मनुष्य मुधि छ विगयना त्याग कारी, सचित्त नाम ५. ए इग्यार पाट लगई. परिहारी, आंबिल तपनाकारक सांभली शालाई आवी तिवार पछी चउमालिसिमें पाटि श्री जगच्चंद्र सरी देही कुशल कहें । ए श्री सुरीनो बडु अनि जिहां हूया । तेणइं आयु पर्यंत आंबिल तप करतां वर्ष १२ लगिणि चिरंजीवी हुई तिहां लगण आंबिल तप देही हूया, तिवारी श्रीं जगच्चंद्र सूरीने तपा बिरुद हओ तेह कुशल देखी वांदी कहे-गुरांजी तुम्हारी कुग गठ अनि थकी हवणां छठो तपा गछ नाम कहिवाणो ६. ते कुण तप ? तिवारि उ० श्री देवकुशल कहे ...... पहिला बड गछ कहिबातो। एतलें कह्या ए पांच एहवा वचन ३० श्रीदेवभद्र साभलीं श्री जय- आचार्य तेहने एक एक बिरुद कहिवाणा अने श्री जग' तसिंह भप क ( ७४-२ ) है-ए तप करता कटला वर्ष चंद्र सूरी पांच बिरुद कहिवाणो ते कहे छे.-कौटिक हुया | तिवारि सूरी श्री देविंद्र कहें-ए सूरीने तप वंश १ चंद्र कुल २ बज्री शाषा ३ वड गछः ४ अनि करतां वर्ष बार हुया । तिवारि श्री जयतसिंह मनस्युं पांचमो तपा गछ बिरुद ५, ए पांच विरुद चिंतवई-माहा योगिंद्र महायतीनी तपस्या बार वर्ष श्री ( ७५.२ ) आ० जगच्चंद्र सूरी कही छै, अधिक नहीं । तेह थकी ए अधिक तप जाणी ने कह्या । ते किम जे श्री जगच्चंद्र सूरी पछी ए
आचार्य पांमी राउल श्री जयतसिंह साल मनध्य बंद हवा निरुद धारक कोई आभार्य हूया नही । समक्षई कहि--भो भी लोका ! तुम्हे सुरींनइं आज से माद श्री जगचंद्र सूरीने पांच विरुदनी उपमा कही। थकी तप्पा कहीज्यो । एतलई श्री वीर नीर्वाण हया श्री जगचंद्रे क्रीया उद्धार कीचो । तिवारें एकात्री गौत्र
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