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जैन साहित्य संशोधक.
[भाग
आधारे जैन शास्त्रोनुं संस्करण, उपर जणाव्या प्रमा- वाय बीजो कोई तफावत जोई शक्यो नथी. * जे जे णे वलभीपुरमा थयु हतुं. आ कारणने लईने तेने बाबतोमा शौरसेनी अने मागधी सामान्य प्राकृतथी जैन सौराष्ट्री नाम आपq वधारे युक्त गणी शकाय जुदी पडेछे ते बधी बाबतोमा जैन प्राकृत, उपर बताखरूं; परंतु, साधारणरीते महाराष्ट्रीने नामे ओळखाती वेला बे अपवादो अने अन्य बे अपवादो बाद करतां प्राकृतभाषाना सामान्य स्वरूपनी साथे ते धणे अंशे साधारण प्राकृतने सर्वाशे मळती आवे छे. हेमचंद्र मळती होवाथी अने हेमचंद्रे तेने तेज नाम आपी (४, २६४, २६५, अने ४, २७८) शौरसेनी दीधेलं होवःथी; * नवं नाम आपवानी हुं हिंमत (-अने मागधी) मा 'भगवान्' अने 'भगवन्' तेमज करी शकतो नथी.
'मघवान् ' अन ' मघवन् ' रूपी प्रथमा अने संबो___वळी जैन प्राकृतनुं स्वरूप पण शोधी काढवं धनना एकवचनना रूपोने बदले अनुक्रमे 'भयवं' अने कठण नथी. ते एकंदरीते जैन माहाराष्टीनी सरखीज ' मघवं ' तथा 'तस्मात्' ने बदले ‘ता 'विधान भाषा होवाथी अने भेद मात्र आपरूपोनी दृष्टिए ज करे छे. आ रूपो जैन प्राकृतमा पण आवे छे. महाउत्पन्न थएलो होवाथी, आपणे तेने योग्य रीते प्रा- राष्टी सिवायनी अन्य प्राकृत भाषानी साथे जैन चीन महाराष्ठी अथवा आर्ष महाराष्टी कही शकीए प्राकृतनी समानताना आ दाखलाओ, सामान्य छीए. हेमचंद्र तेने ' आर्षम् ' एटले ऋषिओनी भाषा साथेनी तेनी सामानताना दाखलाओना मुभाषा कहे छे. अने जैन महाराष्ट्रानी अंदरज तनुं प्रो. वेबरनु निश्चयपूर्वक एम कहेQ छ के, थे, ज, अने
ड्य ने बदले य्य, अने क्ष ने बदले ल्क नो फेरफार सिद्ध न्य नियमोना अपवाद रूपे माने छे, अने जणावे छे करे छे के जैन-प्रारुत ते मागधी छे. वेबर ' ' अने '-' रूपी
स्वरूप दर्शक चिन्होंने ( वर्णोने) य्य अनेक सचक बतावे के, प्रायः सामान्य प्राकृतना नियमो ऋषिओनी छे. परत ते (चिन्हो) वास्तवमां ज्ज अने क्ख बोधक छे.
आ चिन्हों जैन महाराष्ट्री तेमज जैन प्रारुत ए बन्ने भाषामा मन्तव्य प्रकट करी सूचवे छे के जैन प्राकृतनुं सादृ
वपराय छे. अने जैन महाराटीमां तो तेने निर्णीतरूपेज
ज्ज अने क्ख सूचक गणवामां आवे छे. तेथी जन प्रारुतमा श्य बीजी कोई पण प्राकृत भाषा करता महाराष्टी पण ते तेज अक्षर सूचक होवा जोईए. जो एम न गणाता
होत अने हेमचंद्रे तेने जैन प्रारुतमा भिन्न अक्षर सूचक साथे वधारे छे. तेमन आ कथन घणुं प्रमाणभूत छे.
वांच्या होत तो जरूर तेमणे तेने २, ८९ अने ९. सत्राना
अपवादरूपे जणाव्या होत. आ उपरांत ज्यारे हेमचंद्र शौरछे, अने बीजं, संपूर्ण लोकमान्यताथी प्रतिकूल एवो
सेनीमा (४, २६६ सत्रमा) 2 ने बदले य, अने माग
धीमा ज द्य अने य ने माटे य नो (४,२९२), तेमज पोतानो अभिप्राय तेमणे आपेलो छे. जैन प्राकृतमां स्वरनी मध्यमा आवेला क्ष ने माट x क ' नो (४, हेमचंद्रे जे मागधीत्व जोय ते मात्र अकारान्त २९६) आदेश करे छे, त्यारे जो तेमणे वेबरनी माफक उक्त
अक्षरो वांच्या होत तो ते सूत्रोमां जरूर एम जणाव्यु पुल्लिंग शब्दना प्रथमाना एक वचनी रूपना अंते होत के आर्ष भाषामा पण एमज थाय छे. लिपिशास्त्रनी आवता 'ए' प्रत्यय रूपज छे. अने हैं पण ते सि. दृष्टिए रक (के जेना प्राचीन रूपो'-' अने - छे) अने
'-' ए संज्ञाओनी समजती माटे डॉ. बुल्हर ना कहेवा प्रमाणे
याद राखq जोईए के अक्षरो जोडवामा जैनो साधारण रीते * हेमचंद्रन। व्याकरणमा फक्त प्राकृत एवु सामान्य बीजा अक्षरने पहला अक्षरनी पछी नहीं पण तेनी नांचे मूके नामज मळे छे, महाराष्ट्री एवं विशेष नाम मळतुं नथी. डॉ. छ, पहेली त्रण संज्ञाओ ते क नां उत्तरोत्तर थएलां सादा जेकोबीन आ कथन के, हेमने जैनग्रंथोनी प्राकृतने महा- रूपोछे. अने बीजी संज्ञा '_' मां ज पुरातन रूप अर्थात राष्ट्री एवं नाम आप्युं छे, ते अमारा समजवामां बराबर 8 दृष्टि खेंचे छे. आआ नियमानुसार कल्पसूत्रना मळमां आआवतुं नथी.-संपादक.
वेला पूर्वोक्त जोडाक्षरोने में kkh अनेथी दीव्या छे.
भाषाने
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