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जैन साहित्य संशोधक
[ भाग १
___ आ उपर आपेली कथा देखीती रीतेज काइ होवाथी ए समग्र साहित्यनी समानज तेमनुं पण पण ऐतिहासिक उपयोगिता वाळी जणाती नथी. भवितव्य सर्जाएलुं छे. अने आ कारणथी हवे आपण तमज हेमचंद्रे तेनो उल्लेख पण करेलो नहीं होवाथी समग्र जैन साहित्यनु सामान्य रीते विवेचन करवू ते अर्वाचीन होय रेम भासे छ. तेथी आ संबंधमां जरूरन छे. ए साहित्यनो सर्वोत्कृष्ट अने पवित्र आपणने कोई पण जातनो विचार करवानी जरूर भाग ते ४५ आगमो गणाय छे.' आमांना केटनथी. परंतु भद्रबाहुसंहिताना संबंधमां कांईक विवे. लाकना कर्ताओनां नामो पण बनाववामां आव्यां चन करवानी जरूर छे. डॉ० बुलर पोते ते छे. उदाहरण तरीके दशवकालिकसूत्रना कर्ता शय्यंनामनु एक पुस्तक मेळव्यान जणावे छे. तेओ कहे भव, दशाश्रुतरकंध अने व्यवहार सूत्रना का भद्रछ के ए संहिता अन्य संहिताओना जेवीज छे. अने बाहु, अने प्रज्ञापनाना कर्ता श्यामार्यने बताववामां मुकाबलामां ते अर्वाचीन समयमा बनेली होय तेम आवे छे. परंतु घणा आगमो तो महावीरे पोतेज जणाय छे. वराहमिहिर, बीजा अनेक ग्रंथका रोना प्ररूप्या छ, एम कहेवाय छे. आ कहेवानो अर्थ उल्लेखो साथे सिद्धसेन नाम ना एक जैन ज्योर्विद- एवो नथी के साक्षात् महावीरेज अंगो अने उप.गोनो पण उल्लेख करे छ,(Kern, Brihat Samhitis, नीरचना करीछे.पण तेनो भावार्थ एम छे के ते आगPrefauce p. 29.) परंतु प्रस्तुत पुस्तकना संबंधमां ते मोमां वर्णवेली बधी हकिकतो महावीरे पोतेज उपकांई सूचन करतो नथी. आ उपरथी एटलो निर्णय देशी छे, अने तेथी ते तेमनाज करेला कहेवाय छे. करी शकाय छ के भाद्रबाहवी संहिता वराहमिहि- हिंदुस्थानमा ग्रंथकर्तृत्व मात्र मूळ वस्तु-मूलभूत रनी पछीथी रचाएली छे. अने तेथी के ई पण रोते तत्त्वना अर्थना उपदेशने आश्रीने मनाय छ, नहीं के तना कर्ता भद्रबाहु, ते कल्पना कर्ता भा- शब्दरचनाने आश्रीने. शब्दरचना गमे तेम थाय, बाहु तो नज होई शके. कारण के कल्पसूत्रनी तने प्राधान्य आपवामां आवतुं नथी. फक्त अर्थमाअंतिम आवृत्तिज-तेमां जणाव्या प्रमाणे---वीर त्रनेज महत्त्व अपाय छे. ग्रंथकर्तत्वनो जे अर्थ आपणे संवत् ९८० एटले ई. स. ४५४ अथवा समजीए छीए ते अर्थमां महावीर सत्रोना कर्ता ५२४ मां थएली छे. आ समय वराहमि- नथीज, एम आपणे सहेलाईथी सिद्ध करी शकीए हिरनी पहेलांनो छे–निदान तेनो समकालीन छोए. कारण के घणां खरां सूत्रोनी शरुआतमा आतो खरोज.
पेली नोंध उपरथी जणाय छे के ते सुधर्माए जम्बू___ कालक्रमपूर्वक गोठवतां भद्रबाहुना संबंधमां -
१ नाचे आपेली आगमनी टीप ड० बहलरे कृपाकरी उपर प्रमाणेनी हकिकत जैनग्रंथामी मळी आव मने मेळवी आपी छे. १ अंगोः--आचारांग, सूत्रकृतांग, छे. ऐतिहासिक दृष्टिए तेनी उपयोगिता गमे ते स्थानांग, समवायांग, भगवती. ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा,
अंतकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्नव्याकरण, अने विपाक
सूत्र; २ उपांगो:-- औपपातिक, राजप्रश्न, जावाभिगम, लेखको एकमत तेमने पाताना एक प्राचीनतम प्रजापना. जम्बदीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति. सर्यप्रज्ञप्ति निरया.
वली, जेमां-कल्पावतंस, पुष्पिक, पूष्पचूलिक अने वहि. कृतिओ समग्र जैनसाहित्यनो एक विशिष्ट भाग दशा; ए अंतर्गत थएलां छे३ प्रकीर्णकोः--- चतु:शरण,
अतुर प्रत्याख्यान, भक्त, संस्तार, तण्डुलवइयाली, चन्दावीज, १ सिद्धमेन एक प्र.यात जैन लेखक छे अने एवं कहे. देवेन्द्रस्तव, गणिवीज, महाप्रत्याख्यान, वीररतवः ४ छेदोवाय छे के तेमणे विक्रमादित्यने नवीन संवत् प्रवर्त ववा निमीथ,महानिशीथ, व्यवहार,दश श्रुतस्कन्ध,बृहत्वल्प, पञ्चमाटे केटलीक सहायता आपी हती.कल्याणमंदिरस्तोत्रनामनी कल्प; ५ नन्दीसूत्र, अनुयोगद्वारः ६ मूलसूत्रोः- उत्तराध्यतेमनी एक रुति मनाय छे.
यन, आवश्यक, दशवकालिक अने पिण्डनियुक्ति.
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