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जैन साहित्य संशोधक
[ भाग .
जग्मुस्तदा केऽपि कथंचनापि । मन्त्रीश्वरे धर्मधराधुरीणे
तस्मिन् विशश्राम भरस्तु तेषाम् ॥ १. न वाहनं यस्य स तस्य वाहनं
नासीद्धनं यस्य स तस्य वित्तम् । न चीवरं यस्य स तस्य वस्त्रं __ कल्पद्रुकम्पः प्रददौ पृथिव्याम् ॥ ११ भुङ्क्ते स्म सर्वेष्वपि भुक्तवत्सु
शेते स्म सुप्तेषु स यात्रिषु । प्रबुध्यते स्म प्रथमं तदित्थं
संघप्रभुत्वव्रतमाचबार ॥ १२ प्रभूतभोज्यानि बहूदकानि
सुगोरसान्युन्मदमानवानि । तस्यातिदुर्गेऽपि पथ प्रयाणा
न्युधानलीलासदृशान्यभूवन् ।। १३ याप्रसंगेषु जगाम येषु
पुरेषु पै.रोच्छ्रिततोरणेषु । तेषामधीशैः सविशेषमेष
संमान्यमानः सममानयत्तान् ।। १४ अभ्यर्यमानः पथिकैरनेकै
वस्तून्यनेकान्यपि वस्तुपालः । तेभ्यः प्रभूतानि पथि प्रयच्छ
नाहं करोति स्म न कुप्यति स्म ।। १५ पुरच पृष्ठेऽपि च पार्श्वयोश्च
परिस्फुरन्तः खरहेतिहस्ताः । यात्राजनं वर्मीन तस्य शश्व.
दश्वादिरूढाः सुभटा ररक्षुः॥१८ समुदतीर्णजिनेन्द्रहम्
नवैः सरोभिश्च सरोजरम्यैः। प्रस्थानमार्गः सचिवस्य सोऽभू..
दजानतामप्युपलक्षणीयः ।। १९ यावन्ति बिम्बानि जिनेश्वराणां
श्वेताम्बराणां च कदम्बकानि । मार्गेषु तेषां मुषिताश्रितातिः
पूजां स निर्वर्त्य ततः प्रतस्थे ॥ २. स पंचनिर्विषयप्रपञ्चप्रयाणकैः प्रीणितभव्यलोकः ।
धराधरं धर्मधुरंधरधी
शत्रुजयं शत्रुजयी जगाम || २१
-कीर्तिकौमुदी, सर्ग । इन श्लोकोंका भावार्थ यह है कि-शरत्कालके आने पर मंत्री वस्तुपालने तीर्थयात्राके लिये तैयारी की। उसके साथ गांवके अन्यान्य लोक भी भत्ता, वाहन, जलादिके वर्तन इत्यादि मार्गमें आवश्यक ऐसी सब चीजे ले ले कर तैयार हुए। मंत्रीने दूर दूर देशोंके धावकोंको भी संघमें आनेके लिये आदर पूर्वक आमंत्रण किया था इससे वे भी सब लोक आ पहुंचे। इस प्रकार सब लोगोंके तैयार हो जाने पर, अपने कुटुंबी, सगे, सन्बन्धी, स्नेही इत्यादि सब जनोंके साथ, राजाकी आशापूर्वक, मंत्रीने शुभ मुहूर्तमें प्रयाण किया। यात्रियोंमेंसे कोई रथापर, कोई घोडोपर, कोई ऊंटोपर, कोई बैलोपर, इस तरह जुदा जुदा वाहनों पर स. वार होकर चलते थे, पर उन सबका भार मंत्रीके शिरपर था। साथ चलनेवाले यात्रियोंमेंसे जिसके पास वाहन नहीं था उसको वाहन देकर, जिसके पास धन नहीं था उसको धन देकर और जिसके पास वस्त्र नहीं था उसे वस्त्र देकर मंत्रीने उस स. मय साक्षात् कल्पवृक्षके समान आचरण किया था । संघमें सब मनुष्योंके भोजन कर लेनेपर मं. त्री भोजन करता था, सबके सोजाने बाद सोता था और सबके ऊठनेके पहले ऊठता था-इस प्रकार संघकी संपूर्ण प्रतिपालना करता था। यात्रियोको हमेशा उत्तम प्रकारका भोजन कराया जाता था. मीठा पानी पिलाया जाता था और दूध-दहीं आदि गोरस खिलाया जाता था। इस कारण वह वि. षम मार्गकी मुसाफरी भी लोगोंको उद्यानलीलाके जैसी आनंददायक हो गई थी। जिन जिन गांवोनगरों में वह संघ पहुंचता था वे सब गांव-नगर वहांके निवासियोंकी ओरसे ध्वजा-तोरणादिसे खूब सजाये जाते थे और वहां के अधिकारी वगैरह सब जन आदरपूर्वक उस संघकी पेशवाई में आते थे। स्थान स्थानमें अनेक याचक जन आकर मंत्रीके पास अनेक प्रकारकी याचना करते थे और वह सबको यथायोग्य दान देकर संतुष्ट करता थापरंतु इस विषयमै न कभी वह अहंकार ही प्रद
पल
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