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जैन-हितैषी।
यह जबलपुरके हिन्दसाहित्यसम्मेलनमें पढे जाने
के लिए लिखा गया था । बडी गहरी खोज और हिन्दीका सुप्रसिद्ध मासिक पत्र ! इसमै दिग- पारश्रमसे इसकी रचना हुई है। हिन्दीका प्रारंभ म्बर और श्वेताम्बर दोनों संप्रदायोंके विद्वानोंके कब हुआ, उसकी प्रारंभिक अवस्था कैसी थी, लेख रहा करते हैं । ऐतिहासिक लेखोंके लिए यह और फिर अब तक उसमें किस क्रमसे परिवर्तन खास तौरसे प्रसिद्ध है। अब तक इस में अनेक होते रहे हैं, इन बातोंको जानने के लिए इसे अवश्य महत्त्वके लेख निकल चुके हैं। जैनधर्मपर तुलना- पढ़ना चाहिए। इसमें बहुतसो बातें ऐसी लिखी त्मक दृष्टिसे लिखे हुए लेख भी इसमें रहते हैं और गई हैं; जो बिलकुल ही अश्रुतपूर्व हैं । मूल्य छह धे बडी ही निष्पक्षता और उदारतासे लिखे जाते आने । दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंके है। यह सब संप्रदायोको समष्टिसे देखता है। जैनविद्वानों और उनके ग्रन्थों का परिचय सैकडो जैनग्रन्योंकी समालोचनायें भी इसमें रहती हैं। , प्रत्येक जैनीको इसका ग्रहक होना चाहिए । वार्षिक '
- ग्रन्थोंको पढकर दिया गया है। मूल्य दो रुपया । ग्राहक वर्षके प्रारंभ और मध्यसे
नोट-दिगम्वर सम्प्रदायक ना
छपे हुए . संस्कृत, बनाये जाते है । वर्ष दिवालीसे शुरू होता है। प्रारुत और हिन्दीक ग्रन्थ हमारे यहों मिलते हैं। सूचीपत्र
मंगाकर देखिये। माणिकचन्द-दिगम्बर जैनग्रन्थमाला। इसमें दिगम्बर सम्प्रदायक संस्कृत और प्राकृत
भारतके प्राचीन राजवंश। : भाषाके ग्रन्थ प्रकाशित होते हैं और सब ग्रन्थ सिर्फ हिन्दी में इतिहासका अपूर्व ग्रन्थ । इसमें प्राचीन लागतके मूल्यपर बेचे जाते हैं । स्वर्गीय दानवीर सेठ भारतके क्षत्रपुवंश, हैहयवंश, परमारवंश, पालवंश, माणिकचन्द हीराचन्द जे. पी. के स्मारकमें यह चौहानवंश और सेनवंशके तथा उनके शाखावं. निकलती है। अब तक इसमें नीचे लिख १५ ग्रन्थ शोके राजाओंका श्रृंखलाबद्ध इतिहास लिखा गया निकल चके हैं। प्रत्येक लायब्रेरीमें इनका एक एक है। सिक्को, शिलालेखो, ताम्रपत्रों, दानपत्रों, सेट मँगाकर रखना चाहिए।
ग्रन्थप्रशस्तियों, पुराणों, विदेशी यात्रियोंके लखो १ लघीयस्त्रयादिसंग्रह, भट्टाकलंककृत मू०।- और दूसरे अनेक साधनाले बडे परिश्रमके साथ २ सागारधर्मामृत सटीक, पं० आशाधरकृत में इसका संग्रह किया गया है। प्रत्येक बात प्रमाणस
हित लिखी गई है। ऐसी पुस्तकों के लिखने में कि३ विक्रान्तकौरवीय नाटक, हस्तिमल्लकृत ।
तना परिश्रम पडता है और कितना समय लग: ४ पार्श्वनाथचरित, वादिराजकृत
ता है, इस बातका अनुभव वे ही लोग कर सकते ६ मैथिली कल्याण नाटक, हस्तिमल्लकृत ।
है जो प्राचीन बातोकी खोज किया करते हैं।
जोधपुर-म्यूजियमके अध्यक्ष श्रीयुत पं० विश्वेश्वर६ आराधनासार सटीक, देवसेनकृत
नाथ रेऊ साहित्याचार्य इसके लेखक हैं। पहला ७ जिनदत्तचरित्र, गुणभद्रकृत
खण्ड लगभग तयार है। मूल्य ३ रु.। आगेके ८ प्रद्युम्नचरित्र, महासेनकृत
खण्डोम गुप्तवंश, राष्ट्रकूट [राठौर वंश, आन्ध्रवंश
आदिके इतिहास रहेंगे और वे क्रमशः छपते रहेंगे। ९ चारित्रसार, चामुण्डरायकृत
इसमें अनेक जैन विद्वानों आचार्यों और जै१० प्रमाण-निर्णय, विद्यानन्दकृत
न शिलालखाका वर्णन आया है, जो जैन इतिहास ११ आचारसार, वीरनन्दिकृत
प्रेमियोके लिए बहुत उपयोगी है। प्रत्येक लायब्रेरी १२ त्रिलोकसार सटीक, नेमिचन्द्रकृत । और पुस्तकालयमै इनको एक एक प्रति रहनी
चाहिए। इस देशकी किसी भी भाषामें प्राचीन १३ तत्त्वानुशासनादिसंग्रह, ...........
राजवंशोंका इतिहास नहीं है। १४ अनगारधर्मामृत सटीक, आशाधारकृत ३ ।
नोट-हिन्दी के उच्चश्रेणी के पचासों अन्य हमारे द्वारा १५ युक्त्यनुशासन सटीक मूल समन्तभद्र
प्रकाशित हुए हैं और दूसरोंके छ राये हुए अन्य भी हमारे टीका विद्यानन्दकृत १ यह विक्री के लिए तैयार रहते हैं । सूर्चामत्र मंगाकर देखिए हिन्दी-जैन साहित्यका इतिहास।
हमारा पत्ताइसे जैनहित और हिन्दीग्रन्यरत्नाकर-सौरी- मेनेजर, जैन प्रन्थ रत्नाकर कार्यालय जके सम्पादक श्रीयुत नाथूराम प्रेमीने लिखा है।
हीराबाग, पो. गिरगांव, बम्बई
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