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जैन साहित्य संशोधक.
[भाग 1 अर्थात "श्रीदेवर्धिगाण क्षमश्रमणे, बार दुकाळीने आ अंगोमां पण मागधी वा अर्धमागधी भाषा लीधे घणा साधुओनो नाश थये अने अनेक बहुश्रुतानो प्रयोजायानुं सूचवे छे, परंतु आपणे भाषादृष्टिए अंविच्छेद थये, श्रुत भक्तिथी प्रेराई भावी प्रजाना गोमां योजाएल भाषानुं परीक्षण करी ते प्रवादनी ( आपणा ) उपकार माटे श्रीवीरात् ९८० वर्षे श्री. समूलता वा निर्मूलता जाणी लेवी जरूरनी छे. संघना आग्रहथी ते काळे बचेल साधुओने वलभी- आ विषयने चर्चता पहेलां मारे ज्ञान सौकर्यने खापुरमा बोलावी तेओना मुखथी अवशेष रहेल ओछा- तर मागधी भाषानुं पुरेपूरुं शब्दशरीर प्रथम अहीं वधता, त्रुटित अने अत्रुटित आगमना पाठोने अनु- देखाडवू जोईए, जे द्वारा मागधी भाषाना शब्द शरीर क्रमे पोतानी बुद्धिथी सांकळी पुस्तकारूढ कर्या. साथ अंगसाहित्यना शब्दपिंडने सरखाववाथी उरना आवी रीते मूळमां सूत्रो गणधरोनां गुंथेला होवा प्रवादनी तथ्यता आपोआप जणाई आवे. छतां देवर्धिगणिए तेनु पुनः संकलन करेलु मागधी भाषानी प्रक्रियानो घणो भाग प्राकृत होवाथी ते बधा आगमोना. कतो श्रीदेवाधगणि भाषानी प्रक्रियान मळतो छे, एटले हुं ते मळता क्षमाश्रमण ज कहेवाय छे."
भागनो उल्लेख नहीं करतां अहीं तेना केटलाक ___ उपरनी हकिकतथी समजी शकाशे के गण
: अपवादोनो ज एक कोठो आपीश; अने साथे ते धरोए गुंथेल सूत्रो (अंगो) उपर केवा केवा युगो पसर्या
कोठामा प्राकृत भाषानां अने अंग साहित्यनां रूपो छे. जे साहित्य उपर कुदरत तरफथी ज आवो. पण आपीश के जेथी ते अंग साहित्यनां रूपोर्नु मागभीषण प्रकोप थाय ते साहित्य, परंपरामां एक सरखं धीनां कयां कयां रूपो साथे विशेष साम्य छ ते ज उतरी आव, ए वात मारी कल्पनामा तो शीघ्र तारवी शकाशे अने ते तारवणी उपरथी ज बंध बेसती नथी आवती. किंतु जे अंगसाहित्य अ- अंग साहित्यनी भाषानो निर्णय थवा साथे उपरना त्यारे विद्यमान छे ते दुकाळोना भीषण प्रहारोने ल लीधे काळ, रूढि, स्पर्धा अने स्वाच्छंद्यनां असह्य
पारंपरिक प्रवादनुं प्रामाण्य पण प्रत्यक्ष थई जशे. जखमोथी जखमाएल स्थितिमा आपणी पासे हयाती
तुलनानी दृष्टिए रूपोर्नु कोष्टक आ प्रमाणे छे. धरावे छे.
१ संस्कृत. प्राकृत. मागधी. अंगसहित्य. ___ आ रीते अंग साहित्यनी उत्तरोत्तर थएल स्थि
भीमः भीमो भीमे भीमे, भीमो तिना निरीक्षणथी आपणे समजी शकीए छीए के
भीमात् भीमाओ ( भीमादो भीमाओ विद्यमान अंग साहित्य ते गणधरकृत अंगसाहित्यनी
भीमादु परिवर्तित प्रतिच्छाया छे. अने ए अनुमान कर
भीमस्य भीमस्स (भीमस्स भीमस्स वाने उपरनां प्रमाणो पूरतां जणाय छे. ज्यारे अंग
भीमाह साहित्यना मूळ भावोमां पण न्यूनाधिकता थवा भीमानाम् भीमाणं ( भीमाणं भीमाणं लागी, त्यारे तेमां योजाएल विचारी भाषा शी रीते
भीमाहं स्थिर रही शके ? एटले आ विद्यमान अंग साहि- अहम् अहं हगे अहं त्यमा “मागध्या अर्ध " नी दृष्टिए अर्धमागधी भाषा वयम् अम्हे हगे अम्हे पण टकी शकी नथी, तो पछी तेमा मागधी भाषानो कञ्चुकिन् ! कंचुइ! (कंचुइआ ! ० प्रयोग तो शी रीते रही शके ?
कंचुइ ! जो के वृद्धप्रवाद अने सांप्रदायिक परंपरा तो राजन् । राया! लायं ! ०
Aho! Shrutgyanam