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जैनधर्मनु अध्ययन.
जैनधर्मनुं अध्ययन,
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[ लेखक - श्रीयुक्त सी. पी. राजवाडे, एम्. ए. बी. एस. सी. प्रोफेसर ऑफ पाली, बरोडा कॉलेज. ]
लघु ग्रंथो, सार ग्रंथो, स्थूलवर्णनात्मक ग्रंथो, रहस्यो - दूघाटकग्रंथो ( Keys = कुंचीओ ) शब्दकोशो, इत्यादि भारतवर्षना विद्वानो द्वारा संपादित थई, प्रकाशित थता जाय छे। अने आ सर्व उपरांत, देशी भाषामां पण प्रतिवर्ष मोटा प्रमाणमां जैनसा हिस्य बहार पडतुं जाय छे.
प्रो. वेबर, बुल्हर, जेकोबी, हॉर्नल, भाण्डारकर, ल्युमन राईस, गेरिनॉट विगेरे विद्वानोए जैनधर्मना संबंधमां अंतःकरणपूर्वक अथाग परिश्रम लई अनेक महत्त्वनी शोधो प्रकट करेली होवा छतां, भारतवर्षीय विद्वान ही सुधी ए धर्मना अभ्यास तरफ पुरतुं ध्यान आप्युं नथी. प्राच्यविद्या-कळा-साहित्यना संशोधनना प्रारंभ काळमां, कदाचित् जैनसाधुओनी उदासीनताने ली, तथा, हस्तलिखित पुस्तकोमां छुपाएलं पोताना धर्मनुं पवित्र ज्ञान जैनेतरोने आप - वामां तेओनी नाखुशी होवाने लीधे, तद्विषयक अध्ययनमा विद्वानाने प्रेरणा थई नहीं होय. पछी तो, विद्वानोनो अनुराग बौद्धधर्मना अभ्यासमां व तो एलो होवाथी केटले अंशे, तेओनी धर्मविषयक अभ्यासमां आ एक महत्त्वनी शाखा तरफ उपेक्षा थई गई हती. वस्तुतः, प्रारंभमां विद्वानोना मगज उपर बौद्धधर्मनी एटली तो प्रबळ सत्ता जामी गई हती के तेओ जैमधर्म बौद्धधर्मनी एक शाखा तरी केज जणावत्रा लाग्या हता. परंतु, हवे तेओनी दृष्टिमर्यादाने आच्छादित करनारा पडळो नष्ट थवा मांड्यां छे अने तेथी जैनधर्म पूर्वना धर्मोमां पोतानुं स्वतंत्र स्थान प्राप्त करतो जाय छे, जैनसमाज पण सुस्तीमाथी जाग्रत थतो जायछे, अनेक नियतकालिक अने सामयिक पत्रादि प्रकट थता दृष्टिगोचर थाय छे. साधुओने पण पोतानी जवाबदारीनुं भान
होय ते जगाय छे. कोमना धनिकवर्ग तरफ थी मळती उदारताना आश्रित बनेलां परोपकारी मंडळी दिवसे दिवसे विशेष रूपमा जैन ग्रंथो प्रकट करतां जाय छे. जैनधर्म अने साहित्यविषयना अनेक
आम होवा छतां हजी घणुं करवानुं बाकी छे. जैनधर्म ते मात्र जैनोनेज नहीं, परंतु तेमना सिवाय प्राच्य संशोधनना प्रत्येक विद्यार्थी अने खास करीने जेओ पौर्वात्य देशोना धर्मोना तुलनात्मक अभ्यासमां रस लेता होय तेमने तल्लीन करी नांखे एवो रसिक विषय छे.
जैन- साहित्यनी अर्वाचीन संशोधन पद्धति अनुसार अने गुणदोषनी विवेचक दृष्टिए अभ्यास थवानी बहु आवश्यकता छे. आ विषयना निष्णात विद्वानो स्पष्ट जणावे छे के आवी रीते तुलनात्मक पद्धतिए तेनो अभ्यास थवाथी हिंदुस्थानना प्राचीन इतिहासना संबंधमा अत्यार सुधीमां अंज्ञात रहेली घणीक हकिकतो प्रकट थशे अने ऐतिहासिक काहनी माहिती वगरनी घणीक खाली जग्याओ पूर्ण थशे. आवी रीते, इतिहास - प्रेमी, तेमज आर्यावर्तना प्राचीन धर्मोना अने तत्त्वज्ञानना अभ्यासीने जैनसाहित्य एक तद्दन नवं अने अणखेडाएलं विस्तृत क्षेत्र छे, परंतु वर्तमानमां जैनधर्मना अभ्यासीने के जे निष्पक्षपाती अने समदर्शी मनथी ए विषयनो अभ्यास करवा मांगतो होय, तेने पोताना कार्यम केटलीक मुस्केलिओ नडे छे. प्रथम अने प्रधान मुस्केली ए छे के योग्य रीते संपादन करेला मूळ
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