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ज्ञानप्रदोपिका। रवीन्दुसितसौम्यास्तु वलिनः पूर्णवीक्षणे । अर्धक्षणे सुराचार्य्यस्त्रिपादपादार्धयोः कुजः।८॥ पादेक्षणे बली सौरिः बोक्षणे बलमीरितम् । सूर्य, चंद्र, शुक्र और बुध पूर्ण दृष्टि में बली होते हैं, वृहस्पति आधी में, मंगल त्रिपाद और अर्द्ध में तथा शनि पाद दृष्टि में बली होते हैं -ऐसा दृष्टिबल कहा गया है।
तिर्यक् पश्यन्ति तिर्यञ्चो मनुष्याः समदृष्टयः ॥६॥
ऊर्द्ध वेक्षणे पत्ररथाः अधोनेनं सरीसृपः । तिर्यग् योनि के ग्रह तिरछे देखते हैं, मनुष्यसंज्ञक ग्रह समदृष्टि अर्थात् सामने देखने वाले होते हैं। पत्ररथ ऊपर की ओर देखते हैं और सरीसृप संज्ञक ग्रह नीचे देखते हैं। ग्रहों की इस प्रकार की संज्ञायें पहले ही बता दी गयी है।
अन्योऽन्यालोकितौ जीवचन्द्रौ उद्धवेक्षणो रविः ॥१०॥ पश्यत्यरः कटाक्षेण पश्यतोऽथ कवीन्दुनो। एकदृष्ट यार्कमन्दौ च हाणामवलोकनम् ॥११॥ वृहस्पति और चंद्र एक दूसरे को देखते हैं। सूर्य ऊपर को देखता हैं। मंगल; शुक्र और बुध कटाक्ष से देखते हैं, लू और शान एक दधि से देखते है -इस प्रकार ग्रहों का अवलोकन है।
मेषः प्राच्यां धनुःसिंहावसाक्षश्च दक्षिणे। मृगकन्ये च नैना त्यां मिथुनः पश्चिमे तथा ॥१२॥ वायुभागे तुलाकुम्भी उदीच्या कर्क उच्यते।
ईशभागेऽलिमीनौ च नष्टद्रव्यादिसूचकाः ॥१३॥ नष्ट द्रव्यादि के सूचन के लिये राशियों की दिशायें इस प्रकार है। मेष पूर्व, धनु और सिंह अग्नि कोण, बृष दक्षिण, मकर और काया नैऋत्य कोण में, मिथुन पश्चिम, तुला, कुंभ वायव्य कोण, कर्क उत्तर तथा वृश्चिक और मीन ईशान में।
अकेशुक्राररावर्किचन्द्रज्ञगुरवः क्रमात् । पूर्वादीनां दिशामीशाःऋमान्नष्टादिसूचकाः ॥१४॥ सूर्य, शुक्र, मंगल, राहु, शनि, चंद्रमा, बुध और बृहस्पति ये ग्रह क्रमशः पूर्वादिविशामों के स्वामी हैं।
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