________________
दान-प्रदीपिका। राशिचक्र समालिख्य प्रागादि वृषभादिकम् । प्रदक्षिणक्रमेणैव द्वादशारूढसंज्ञितम् ॥२८॥ वृषश्चैव वृश्चिकस्य मिथुनस्य शरासनम् । मकरश्च कुलीशस्य सिंहस्य घट उच्यते ॥२६॥
मोनम्तु कन्यकायाश्च तुलाया मेष उच्यते । राशिचक्र लिख कर उसमें पूर्वादि कम से वृषादि गशियों को लिखे। वृष के दाहिने मिथुन और मिथुन के दाहिने कर्फ इत्यादि। इस पर से क्रम से आरूढ़ इस प्रकार समझे। वृष का वृश्चिक, मिथुन का धनु, कर्क का मकर, सिंह का कुंभ, कन्या का मीन और तुला का मेष ।
प्रतिसूत्रवशादेति परस्परनिरीक्षिताः ॥३०॥
गगनं भास्करः प्रोक्तो भूमिश्चन्द्र उदाहृतः । ग्रह एक सूत्रस्थ एक दूसरे को देखते हैं। सूर्य को आकाश और भूमि को चन्द्रमा समझना चाहिये।
पुमान् भानुवधूश्चंद्रः खचकप्रणवादिभिः ॥३१॥
भूचकदेहश्चन्द्रः स्यादिति शास्त्रविनिश्चयः । सूर्य पुरुष ग्रह, चन्द्रमा स्त्री ग्रह, सूर्य ववक्र और चन्द्रमा भूमिचक्र देह कहा जाता है, यह निर्णय शास्त्र का निर्णय हैं।
खेः शुकः कुजस्यार्कः गुरोरिन्दुरहिर्विदुः ॥३२॥
उदयादिकमेणैव तत्तत्कालं विनिर्दिशेत् । सूर्य के लिये शुक, मङ्गल के लिये सूर्य, वृहस्पति के लिये चन्द्रमा और गहु के लिये बुध लनादि क्रम से तात्कालिक आरूढ़ होते हैं, ऐसा आदेश करना।
इत्यारूढछत्राः
प्रष्टुरारूढभं ज्ञात्वा तद्विद्यामवलोक्य च । आरूढाद्यावति विधिस्तावती रुदयादिका ॥१॥
Aho ! Shrutgyanam