________________
ज्ञानप्रदीपिका। सप्तमस्थे निशाधीशे ज्वरपीडावती भवेत् ॥१३॥
शुकश्चेत्सप्तमे स्थाने सा वधूमरणं व्रजेत् ।। - सप्तम में यदि शनि हो तो शीघ्र विधवा, मंगल हों तो दूसरे से हरी जाकर अन्यगामिनी, बुध और बृहस्पति हो तो सद्बुद्धि बाली, राहु हो तो विधवा, सूर्य हो तो व्याधि प्रस्त, चन्द्रमा हो तो बुखार की पीड़ा से आकुल और शुक्र हो तो मृत्यु को प्राप्त होती है।
अष्टमस्थाः शुकगुरुभुजगा नाशयति च ॥१४॥ शनिज्ञो वृद्धिदौ भौमचंद्रो नाशयतः स्त्रियम् । (?)
आदित्यारौ पुनर्भः स्यात्प्रश्ने वैवाहिके वधूः ॥१५॥ अष्टम में शुक्र, गुरु और राहु नाश करने वाले, शनि और बुध वृद्धि करने वाले, मंगल और चंद्र मारक, सूर्य और मंगल पुनर्विवाह कारक होते है।
नवमे यदि सोमः स्यात् व्याधिहीना भवेद् वधः । जीवचंद्रौ यदि स्यातां बहुपुत्रवती वधूः ॥१६॥
अन्ये तिष्ठन्ति नवमे यदि वंध्या न संशयः । नवम में यदि बुध हो तो वधू नीरोग, बृहस्पति और चन्द्रमा हों तो बहु पुत्रवाली और अन्य ग्रह हों तो बन्ध्या होती है-इसमें सन्देह नहीं ।
दशमे स्थानके चंद्रो वन्ध्या भवति भामिनी ॥१७॥ भार्गवो यदि वेश्या स्यात् विधवाकिकुजादयः।
रिक्ता गुरुश्चेजज्ञादित्यो यदि तस्याः शुभं वदेत् ॥१८॥ दशम में चन्द्र हों तो बांझ शुक्र हो तो वेश्या, शनि मंगल आदि हो तो विधवा, गुरु होतो रिका और बुध सूर्य हो तो अशुभ (2) फल वाली होती है।
लाभस्थानगताः सर्वे पुत्रसौभाग्यवद्ध काः ।
लग्नद्वादशगश्चंद्रो यदि स्यान्नाशमादिशेत् ॥१६॥ एकादश स्थान में सभी ग्रह पुत्र और सौभाग्य के वर्द्धक तथा लग्न और द्वादश में यदि चंद्रमा हो तो नाशकारक होता है।
Aho ! Shrutgyanam