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नागानन्द-नाटक-भावार्थदीपिकाव्याख्या
हिन्दीअनुवाद सहित । यह नाटक श्रीहर्पदेव की अद्भुत रचना है । इस नाटक में शब्दों की सुन्दरता, अर्थो की गम्भीरता तथा भावों की मनोहरता देखने ही योग्य है परन्तु इसकी सबसे बड़ी विचित्रता है वस्तु का विन्यास-परोपकार के लिये अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाले नायक का अनुपम चरित्र । ऐसे सुन्दर नाटक की आज तक विद्यार्थियों के योग्य कोई व्याख्या नहीं थी। इसी अभाव की पूत्ति करने के विचार से उसकी एक नवीन व्याख्या भावार्थदीपिका कराई है। व्याख्याकार हैं हिन्दुविश्वविद्यालय के संस्कृत प्रोफेसर साहित्याचार्य पण्डित बलदेव उपाध्याय जी० एम० ए० । व्याख्या नाम के अनुरूप ही है। भाव तथा अर्थ का निरूपण तो किया ही गया है, साथ ही साथ अन्य कवियों की समानार्थक सूक्तियों का भी स्थान २ पर सन्निवेश किया गया है। आरंभ में ५० पृष्ठोंका एक पाणिन्य पूर्ण उपोद्घात है जिसमें नाटक सम्बन्धि यावत् ज्ञातव्य विषयों का वर्णन किया गया है। नाटक का स्वरूप, नायक, रस आदि का समुचित विवेचन है । नागानन्द की कथा का मूल क्या है ?-यह कथा कहां से ली गई है ? साथ ही साथ कविने कौन कौन से परिवर्तन किये हैं ? इन सब का यथोचित निरूपण है । श्रीहर्ष का जीवन वृत्त, काल, निर्णय, ग्रन्थ, सभा पण्डित, नागानन्द की विशद समीक्षा आदि अनेक परीक्षोपयोगि विषयों का समुचित विवेचन है । कथा का सारांश भी दे दिया गया है। अन्त में समग्र नाटक का हिन्दी में अनुवाद भी है। जिससे विद्यार्थियों के और भी उपयोग का ग्रन्थ होगया है । नागानन्द पर इतनी उत्तम परीक्षोपयोगि टीका तथा हिन्दी अनुवाद का संस्करण आज तक दुसरा नहीं छपा । ऐसे सुन्दर पौने तीन सौ २७५ पृष्ठों के ग्रन्थ का मूल्य भी बहुत अल्प
लागत मात्र है । सजिल्द संस्करण का १॥)
तथा अजिल्द संस्करण ११)
मेघदूतम्सञ्जीविनी-चारित्रवर्द्धिनी-भावप्रबोधिनी टीकात्रय सहितम् ।
सञ्जीविनी टीकाके साथ चारित्रवर्धिनी तथा साहित्याचार्य पं० श्रीनारायणशास्त्री खिस्तेकृत परीक्षोपयोमि भावप्रबोधिनीटीका एक साथ छप जानेसे विद्यार्थियों की समस्त कठिनाईयां दूर हो गई हैं । मूलश्लोक, सञ्जीविनी-चारित्रवद्धिनी टीका के भावों को स्पष्ट तथा सरलता पूर्वक भावप्रबोधिनी टीका में समझाया गया है । आज तक मेघदूत ३ टीका सहित का इतना उत्तम परीक्षोपयोगि संस्करण दूसरा नहीं छपा । मूल्य भी लागत मात्र बहुत ही अल्प सजिल्द संस्करण का ॥2)
तथा जिलद संस्करण का।) चन्द्रालोकः-शरदागमव्याख्या सहितः । इसके संपादक साहित्याचार्य पं० श्रीनारायणशास्त्री खिस्ते जी हैं । टीका छोटी होते हुए भी मूल के भावों को स्पष्ट समझाती है इस लिए विद्यार्थियों के बड़े उपयोग की है।
मूल्य लागत मात्र) प्राप्तिस्थानम्-श्रीहरिकृष्णनिबन्धभवनम् , बनारस सिटी
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