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________________ पञ्चाङ्गस्पष्टाधिकारः। ञ्चक्राख्यं रविहतशेषकं तु युक्तम् । चैत्राद्यैः पृथगमुतः सदृग्नचक्राद् दिग्युक्तादमरफलाधिमासयुक्तम् ॥१॥ खत्रिनं गततिथियुङ्गिरग्रचक्रा झांशाढ्यं पृथगमुतोऽब्धिषट्कलब्धैः । ऊनाहैवियतमहर्गणो भवे? वारः स्याच्छरचक्रयुग्गणोऽब्जात् ॥२॥ * “ रामेन्दुभूवह्निकरक्षमाभि र्यतो दिनौघोग्रहलाघवीयः । ६४ का भाग दिया तो फल ( क्षय दिन ) ३६ मिले इसको दूसरी जगह धरे हुए २३२७ में हीन किया तो दिन गण २२९१ हुआ इससे अभीष्ट वार नहीं आवता है अतः इसमें एक युक्त किया तो दिन गण २२९२ हुआ ॥ ___ चक्र ३५ को ५ से गुणा तो १७९ हुए इसको दिन गण २२२ में युक्त किया तो २४६७ हुए इसमें का भाग दिया तो शेष ३ बचे (शून्य शेष में चन्द्र एक में भौम इत्यादि) इस से इष्ट गुरुवार आगया ॥ * उदाहरण-- ग्रहलाघव के दिन गण २२९२ में १२३११३ को युत किया तो १२९४ ०५ हुए, चक्र ३५ मे ४०१६ को गुणा किया तो १४०९६० हुए इसको १२५४०५ में युत किया तो ब्रह्म तुल्य दिन गण २६५९६५ हुए, इसमें १२०६३६००१४५२ को युत किया तो कल्प से दिन गण ७२०६३६२७३४१७ हुए, ब्रह्म तुल्य दिन गण २६५९६५ में ७१४४०३८६१३६५ को युत किया तो सृष्टि मण ७१४४० ४१२७३३० हुए, ब्रह्म तुल्य गण २६५९६५ में १५ ६४७३८ को युक्त किया तो कलि गण १८३०७०३ हुए ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009873
Book TitleBhasvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShatanand Marchata
PublisherChaukhamba Sanskrit Series Office
Publication Year1917
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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