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भास्वत्याम्
१२८० में घटाया तो ५१०९ |४०|३९| हुए इसमें ३० घटाया तो ५०७९।४०। ३९ हुए शास्त्राब्द ८१२ में १६ का भाग देनेसे लब्ध अंशादि ५०।४१।० मिले इसको ५०७९ / ४० ३९ में युत किया ता राहुका ध्रुवा ५१३०|२५| ३९ हुआ || ९॥ सूर्य चन्द्रयोः चन्द्रकेन्द्रस्य वीज विधिः पलप्रभा पणिहता दशाप्ता पुनश्च भुक्त्या गुणितः क्रमेण । शतोद्धृतं तदृणकं रवेः स्याद् धनं च चन्द्रे खलु केन्द्रके च ॥१०॥ सं० टी०-- पलप्रभाषड्भिर्गुणितादशभिर्भक्ता पुन: स्वस्वभुक्त्या क्रमेण गुणिता शताप्ता यल्लब्धं तत्सूर्य्यस्य ऋणाभिधानं चन्द्रचन्द्र केन्द्रयोः धनाभिधानं देशान्तरं - भवति ॥ १० ॥
भा०टी० - पलभाको ६ से गुणिके १० काभागदेवै लब्ध को अपनी २ भुक्तिसे गुणा करके १०० का भाग देने से लब्ध सूर्य का ऋण और चन्द्र-चन्द्र केन्द्र का धन संज्ञक अंशादि वीज होता है ॥ १० ॥
उदाहरण - काशीका पलमा ५।४५ को ६ से गुणातो ३४ । ३० हुए इसमें १० का भागदिया तो लब्ध ३।२७ मिले इसको सूर्य के भुक्ति ७ से गुणा किया तो २४/९ हुए इसमें १०० का भाग दिया तो लब्ध सूर्यका वीज अंशादि ऋण ० १४ २९ हुआ । पूर्वके लब्ध ३ २७ को चन्द्रमा के भुक्ति ९० से गुणा किया तो ३१०/३० हुए
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