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भास्वत्याम्
खविधूनितोऽधः स्थानद्वये प्रस्थाप्यः तले खसिद्धिभागासफलेनोनस्तदेव भचक्र २७०० शेषः तदेवशुद्धे खपञ्चयुक्तो दशन्नः चन्द्राष्टभागेन यल्लब्धं तद्भचक्रशेषमध्ये युते सति चन्द्र ध्रुवः स्यात् ॥ ६ ॥
भा० टी० -- शास्त्राब्द को १००० से गुणा कर उसमें १० घटाय दो स्थान में स्थापित कर एक स्थान में २४० का भाग देने से जो लब्ध मिले उसको दूसरे स्थान पर रक्खे हुए अंक में घटावै फिर उसको भचक्र २७०० से शेषित करें । शुद्ध में ५० युत कर के १० से गुणि उसमें ८१ का भाग देने से जो लब्ध मिलै वह भचक्र के भाग से जो शेष बचा है उसमें युक्त करने से मध्यम चन्द्रमा का ध्रुवा स्पष्ट होता है ॥ ६ ॥
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गुणा
उदाहरण - शास्त्राब्दि ८१२ को १००० से तो ८१२००० हुए इसमें १० घटाया तो ८११९९० हुए इसको दो स्थान में स्थापित किया एक स्थान ८११९९० में २४० का भाग दिया तो अंशादि लब्ध ३३८३।१७।३० मिले इसको दूसरे स्थान ८११९९० में घटाया तो ८०८६०६ । ४२।३० हुए । इसको भचक्र २७०० से शेषित किया तो शेष १३०६।४२।३० बचे | शुद्धि ध्रुवा ३६७ में ५० युक्त किया तो ४१७ हुए इसको १० से गुणा किया तो ४१७० हुए इसमें ८१ का भाग देने से लब्ध अंशादि ९१|२८|५३ मिले इसमें भचक्र से शेषित अंक १३०६ । ४२ । ३० । को युक्त किया तो मध्यम चन्द्रमा का ध्रुवा १३५८।११।२३ हुआ || ६ ||
केन्द्र ध्रुव विधिः
रुद्राहतोवेदयुतस्त्रिवेद
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