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तिथ्यादिध्रुवाधिकारः। उसमें ३४९ युक्त करके उसमें ८०० भाग दे फिर लब्ध में ६ युक्त करके ७ का भाग देने से जो शेष वचै वह सूर्यादि सम्वत्सर का पालक होता है । और पूर्व शेष को भाजक में घटाने से शुद्धि होती है । उसको दो जगह धरे एक जगह १०८ का भाग देने से जो लब्ध फल मिले वह मध्यम सूर्य का ध्रुवा होता है ॥ ४ ॥५॥
उदाहरण-शास्त्राब्द ८१२ को १००७ से गुणा किया तो ८१७६८४ हुए इस में ३४९ युत किया तो ८१८०३३ हुएइसमें ८०० का भाग देने से लब्ध १०२२ शेष ४३३ मिले लब्ध १०२२ में ६ युक्त किया तो १०२८ हुए इसमें ७ का भाग दिया तो शेष ६ वचे इस से सूर्य से छठवाँ शुक्र सम्वत्सर का पालक हुआ। हर ८०० में पूर्व शेष ४३३ को घटाया तो शुद्धि ३६७ हुई शुद्धि ३६७ में १०८ का भाग दिया तो लब्ध ३ मिले शेष ४३ को ६० से गुणा किया तो २५८० हुए इसमें हर १०८ का भाग दिया तो लब्ध २३ मिले शेष ९६ को ६० से गुणा किया तो ५७६० हुए इसमें १०८ का भाग दिया तो लब्ध ५३ मिले इस प्रकार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के प्रातः काल सूर्य का अंशादि ध्रुवा ३।२३।५३ हुआ ॥४॥५॥
चन्द्र ध्रुव विधिःसहस्त्रनिघ्नः खविधूनितोऽधः खसिद्धि भागोन भचक्रशेषः। खपञ्च संयुक्तदशनशुद्धे चन्द्राष्टभागाभ्यधिकःशशाङ्कः॥६॥ सं. टी.-अब्दपिण्डः शास्त्राब्दः सहस्रगुणितः
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