________________
(३)
पाण्डेय जी नव्वावगंज काशी से मुझे सम्बत् १९२३ की लि. खी उनके पूर्वज अखिलज्योतिषशास्त्र पारावारीण पं० श्रीकाशी प्रसाद पाण्डेय जी की लिखी हुई प्राप्त हुई और पं० श्रीशारदा प्रसाद तिवारी भदैनी बनारस से उन के पूर्वज पं० आत्माराम त्रिपाठी की लिखी हुई संवत् १८३५ की एक खण्डित प्रति प्राप्त हुई अत एव उक्त महानुभावों को अनेकानेक धन्यवाद देताहूँ। ___इसी प्रकार मैने इन छवों प्रतियों को मिलाया और जहाँ पर इन में भेद पड़ा वहाँ पर जिस ग्रन्थ का पाठ मुझे प्रा. चीन तथा शुद्धजान पड़ा उसी का ग्रहण किया और उस पर अपनी भाषा की उन्नति तथा छात्रो के उपकारार्थ उदा. हरणों के सहित 'छात्रबोधिनी' नामकी संस्कृत तथा हिन्दी टीका बनाई और निजनिर्मित 'करणमञ्जरी' नामक ग्रन्थ से सारणी भी देदिया और वर्षादिक का विश्वा कल्पादिक का गतवर्षसंख्या तथा दिन गण संख्या और अधिमास जानने का प्रकार भी रख दिया है। ____अव यदि इस पुस्तक से छात्रों का कुछ भी उपकार होगा तो मैं अपने को कृतकार्य समझूगा। इति शम् ।
सम्वत् १९६८ वैक्रम कार्तिक शुक्ला एकादशी
भवदीय कृपापात्र मातृप्रसाद पाण्डेय
शङ्कर पाठशाला मौ. आही, पो. कछवा
जि. मिर्जापुर
Aho! Shrutgyanam