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समय निर्धारण एक गहन विषय है और इस के लिये सूर्य सिद्धान्त ब्रह्मसिद्धान्त आदि बहुत से बड़े २ सिद्धान्त ग्रन्थ वन चुके हैं परमकारुणीक पंडितों ने अल्पबोध लोगों के लिये करणकुतूहल5- ग्रहलाघव- मकरन्दादि अनेक ग्रन्थ बनाकर उस विज्ञान को और भी सुलभकर दिया, और इन्ही ग्रंथों के आधार पर सब पञ्चाङ्ग बनते हैं जिससे कि सर्व साधारण को लौकिक वैदिक कार्य करने का समय निश्चित करने में अत्यन्त सुभीता हो गया है ।
धर्मानुरागी आर्य सन्तानको कार्य करने के लिये सिवाय पञ्चाङ्ग के अन्य गति नहीं है ।
यह "भास्वती" ग्रन्थभी पञ्चाङ्ग बनाने में करणकुतूहल - ग्रहलाघव - मकरन्दादि के श्रेणी का है परन्तु विशेषता इसमे इतनी है कि यह सूर्य सिद्धान्त का अनुसरण करती है इसी से इस्का नाम (भास्वती) रक्खा गया है ।
इस ग्रन्थको बने हुए ८१२ वर्ष हुए और वराहमिहिर+के उपदेशानुसार वेधकरके ग्रहों की ठीक स्थिति जानकर इस्की रचना की गई है इसी से लोकोक्तिभी प्रसिद्ध है कि 'ग्रहणे भास्वती धन्या' ग्रहण का समय निकालने में भास्वती धन्या है । और ज्योतिषशास्त्र के प्रत्यक्ष होने में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहणही प्रधान साक्षी है । यथा- प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणौ ।
इस ग्रन्थ की तीन छपी हुई प्रतियां मुझे बडे यत्न करने पर मिलीं, एकतो 'अखवार प्रेस' की सम्वत् १९२३ की छपी हुई प्रति. दुसरी 'विनायक प्रेस' की सम्वत् १९४२ की छपी हुई प्रति, और तीसरी 'भारतजीवन प्रेस' की स म्वत् १९४९ की छपी हुई प्रति, और मेरे वृद्ध प्रपितामह श्री ६ पं० शङ्कर पाण्डेयजीके पिता श्री ६ पं० सदाशिव पाण्डेय जी की एक हस्तलिखित प्रति सम्वत् १८३२ की स्वयम् मेरे पास वर्तमानथी सुहृदूवर पं० श्रीराधाकान्त
* श्रीसूर्य सिद्धान्त समं समासात् । भा० + अथ प्रवक्ष्ये मिहिरोपदेशात् । भा०
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