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त्रिप्रश्नाधिकारः। सं. टी-अयन भागयुक्तः तत् कालिकोऽर्कः तद् भोग्य भागैव-उदयोहतः गुणितः तत् खाग्न्युधृतो रविभोग्य कालः स्यात्, भोग्य कालमिष्टघटी पलेभ्यो विशोधयेत् तदग्रतो राश्युदयाश्च विशोधयेत शेषं खानिगुणितमशुद्धहृतं लवाद्यमशुद्ध पूवैरजायैर्भवनैर्युक्तं ततोऽयनांशहीन तनुः स्यात् ॥ ८ ॥९॥
® " भोग्यतोऽल्पेष्टकालात खरामाहतात् । ___ खोदयाप्तांशयुम् भास्करःस्यात्तनुः” ॥
भा. टी. जिस समय का लग्न साधन करना हो उस समय का सूर्य स्पष्ट करके उस में अयनांश युत करने से सायन सूर्य होता है, फिर उस सायन सूर्य की राशि को दूर करके अंशादि को ३० में घटाने से भोग्य अंश आदि होते हैं, फिर जो सूर्य
* उदाहरण - शाका १८३३ वैशाखशुक्ल १३ वृहस्पति के दिन सूर्य के उदय से शून्यघटी ४८ पल पर इष्टलग्नसाधन करना है। चालित सूर्य ।२६।५०।४२ है, इस में अयनांश २३।३ नोड़ा तो सापन सूर्य ११९०५३।४२ हुभा, इस पर से कही हुई रीति के अनुसार अर्थात् सायन सूर्य के भुक्त अंशआदि को ३० में घटाया तो मोग्यांश १०।६।१८ हुआ, इसको वृष के उदय २५३ से गुणा करके ३० के भाग से भोग्यकाल ८५।१३। ८ मिला, इससे पलात्मक इष्ठ काल ४८ न्यून है इसलिये इसको ३० से गुणा किया तो १४४० हुआ इस में सायन सूर्य के वृष राशि के उदय २५३ का भाग दिया तो अंशआदि फल ५४४१३३० मिले इसको सूर्य ०।२६ १५०४२ में युत किया तो स्पष्ट लग्न १२॥३२१२ हुआ ।।
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