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भास्वत्याम् ।
शतिगुणिता पलभा, अर्द्धिता लङ्कावघेरिह दक्षिणाक्षः
स्यात् ॥ ७ ॥
भा० टी० -- सायन सूर्य के स्वदेशमान से अनुपात से लग्न को स्पष्टकरै । ( अनुपात से लग्न बनावै इससे यह विदित हुआ कि इसके आगे का ४ श्लोक क्षेपक है ) पलभा को २१ से गुणा करके उसको आधा करने से यहाँ लडका के अवधि से दक्षिणाक्ष होता है ॥ ७ ॥
उदाहरण - श्री काशीजी की पलमा ५।४५ को २१ से गुणा किया तो १२० ४५ हुए, इसको आधा किया तो लंका के अवधिका दक्षिणाक्षध्रुवा ६०।२२।२० हुआ ( थोड़े दिन से कोई कोई विद्वान् काशी की पलमा ५/४० मानते हैं तिसपक्ष में दक्षिणाक्ष १८/३० हुआ ) ॥ ७ ॥
लग्नस्पष्टविधिः
तत्कालिकोऽर्कोऽयन भागयुक्तः तद्भोग्य भागैरुदयोहतः स्वः । खाग्न्युधृतस्तद्रविभोग्यकालम्
विशोधयेदिष्टघटीपलेभ्यः ॥ ८ ॥
तदग्रतो राश्युदयाश्च शेष
मशुद्धहृत् खाग्निगुणं लवाद्यम् । शुद्धपूर्वैर्भवनैरजाद्यैयुक्तं तनुस्यादयनांशहीनम् ॥ ६ ॥
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