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प्रहस्पष्टाधिकारः। भुक्त खण्डा होता है (आगे पूर्ववत् कर्म करने से शीघ्र फल होता है) शीघ्र फल को केन्द्र छः राशि से न्यून होय तो दूसरे स्थान में घरे हुए मन्द स्पष्टग्रह में घटाने से यदि छ: राशि से अधिक होय तो युक्त करने से संस्कृत स्पष्टग्रह होता है ("भादिःकृतघ्नः" इस श्लोक से अनुमान होता है कि संस्कृत स्पष्ट ग्रह में १०० का भाग देने से राश्यादि स्पष्ट ग्रह होता है) ॥ ४ ॥ ५॥६॥
भीमादीनां मन्दोच्चचक्रम् ।
प्रह
८.०५०°|
६.०/९०० ४०० मन्दोच्च
भौमादीनां मन्दकेन्द्र खण्डाङ्काः ।
• १ २ ३ | ४ | ५ | संख्या | • ११ १९ | २२ १९ ११ खण्डा ११ ८ ३ ३ / ८११ अन्तर
अन्तर
ऋ.
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ध.ऋ.
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भौमादीनां गुणकाङ्काः।
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Aho ! Shrutgyanam