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ग्रहस्पष्टाधिकारः।
खण्डके प्राप्यते, त्रिगुणिताच्छेषाच्छतभागेन न किञ्चित प्राप्यते तदा पञ्चमखण्डएव-मन्द स्पष्टग्रहाः शीघ्र फलेन संस्कृताः स्पष्टग्रहा भवन्ति ।"भादिः कृतघ्ने" तिवक्षमाण पद्यन-अनुमानं भवतीत्यत्रशतभागेन राश्यादिकाः स्पष्टाग्रहाभवन्ति ॥ ४ ॥ ५ ॥ ६ ॥ "यदान्त्य खण्डं पतितं तदाशु
स एव भोग्य क्रियते फलोनः । न प्राप्यते यत्र तदा क्रमं च
तत्पूर्व खण्डोद्भवमभ्र युक्तम् ॥ १॥ ग्रहः स्वशीघ्रोनितके यदा स्या___ हणे धने वा शर राशि सङ्ख्यः । राशिं विनाङ्कां त्रिगुणी प्रकुर्यात्
तदा ततः शीघ्रफलं प्रसाध्यम्" ॥ २ ॥ भा० टी०- मङ्गल• बुध--वृहस्पति--शुक्र--शनि का क्रम से ८०० ।५००। ६०० । ९०० । ४०० मन्दोच्च है। संस्कारित मध्यम ग्रहको दो जगह धरके एक जगह मन्दोच्च युक्त करने से मन्द केन्द्र होता है, मन्द केन्द्र ६०० से अधिक हो तो १२०० में घटाने से जो शेष बचे वह मन्द केन्द्र होता है, और यदि १२०० से अधिक होय तो उसको १२०० से शेषि करने से शेष मन्द केन्द्र होता है, मन्द केन्द्र छः राशि से न्यून होय तो ऋण संज्ञक, छ राशि से अधिक होय तो धन संज्ञक कहाजाता है, (शीघ्र केन्द्र में भी ऐसे ही जानै) मन्द केन्द्र में १०० का भाग देने से
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