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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
२० थाय छे, ते सत्तरमी पताकागति जाणवी ॥ इति सप्तदशी पंताका गतिः । तथा अष्ट-८ त्रि-३ भुजा-२ अने अचल [ पर्वत -७ ओ (८-३-२-७) अंकवडे शंकुगतिनी प्रवृत्ति गणत्रीथी २० ना अंकनी पिपीलिका गति जाणवी अ धृतिप्रमा| =घृति-१८ प्रमाणनी अटले] १८ मी गति छे ॥ इति अष्टादशी पिपीलिका शंकुगतिः॥९॥
मध्यस्थ षड६ द्वि १२ कृत ४ सागरां ४ कैः । एकोनविंश प्रमितापि संख्याद्विघ्ने १४ नगां ७ के पिचकोणषड् ६ भिः ।
युक्तेच सा विंशतिरेवगण्या ॥ १० ॥ अर्थः-तथा मध्यवर्ती ६ ने द्वि-गुण करतां १२ थया तेमां कृत-४ सागर =४ मेळवतां [ ६४२ १२+४+४= ] २० थाय छे. ओ ओगणीसमी प्रमाणवाली संख्यागति (अटले ओगनीसमी गति थई)॥इति एकोनविंशती गतिः ॥ तथा नग-७ ना अंकमां पण तेवी रीते अटले द्विगुण करीने तेमां विदिशिमा रहेलो ६ नो अंक मेळवतां ( ७४२-१४+६= )२० थाय छे, ओ वीसवी गति गणवी ॥ १०॥
अस्मिन् दशत्रिंशदथाभ्रवेदा ४०। पंचाशता ५० षष्टिरपिप्रबोध्या॥ सप्त ७ त्रि ३ योगेंग ६ चतुष ४ संगे
ऽष्ट ८ द्वि २ प्रयोगे प्रकटादशापि ॥ ११॥ अर्थः-वळी ऑविंशतियंत्रमा दश-१० त्रिस-३० अभ्रवेद [ अभ्र०, वेद-४] ४०, तेमज ५० अने ६० नी अंकगणत्री पण थाय छे अम जाणवू. ते आ प्रमाणे-सात अने त्रणना योगे १०, अंग-६अने ४ ना १ अहिं ८-४-२-६ मे अंक वायव्य-उत्तर-मध्य-अने दक्षिण स्थानीय होवाथी
ओ रीते पताका आकार थयो, अने शंकुगतिनो
अ आकार थयो. इत्यादि रीते वीस गतिओना वीस आकार दर्शावाशे.
Aho I Shrutgyanam