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॥ श्रीरावण पार्श्वनाथस्तवम् पाठः ॥
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श्रीपार्श्वः प्रकटः प्रभाकर इव प्राज्यप्रभावैभवातेजोनन्ततया जगत्त्रयमपिप्रोद्भासयनंजसा ॥ श्रीमद्रावणनामतीर्थविषये ख्यातस्तमोनाशकः ।
स्तुत्यादर्शन निर्मलश्रियमयं पुष्णातु मे नित्यशः ॥१॥ अर्थः-विशाळ प्रभावना वैभवथी अनन्त तेजवडे त्रणे जगतने पण शीघ्र उद्भासन करता (प्रगट करता) अवा, तथा श्रीमदूरावण मामना तीर्थना विषयमां (संबंधमां अथवा ते क्षेत्रथी) प्रसिद्ध थयेला, तथा स्तुतिवडे अज्ञानरुपी अंधकारनो नाश करनारा अवा प्रगट सूर्यसरखा श्री पार्श्वनाथ प्रभु (अटले श्रीरावण पार्श्वनाथ ), ते हमेशा मारी सम्यक्त्वरुपी निर्मळ लक्ष्मीने पुष्ट करो [ वृद्धि पमाडो ] ॥१॥
श्रीमश्रावणमासवत् त्रिजगतीसन्तापविच्छित्तये । प्रोन्नीताम्बुद्गर्भ ( वत्स्व ) देहविमलज्योतिर्जलैविस्तृतैः ॥ यो वै रावण मेघवत्सितरुचिश्चिन्तामणी वाग्रणी।
लोकालोक नमो ददान विधिना जागर्तिमूाविधुः ॥२॥ अर्थः-आकाशमा चढेला मेघना गर्भ सरखा पोताना शरीरनी विस्तार पामेली निर्मल कांति वडे [ अर्थात् मेघ सरखी कृष्ण कान्ति वडे ] श्रीमद् (मेघ जळनी लक्ष्मी वाला) श्रावण मास सरखा जे पार्श्वप्रभु व्रण जगतना संतापने नाश करनारा छे, तथा जे प्रभु वैरावण मेघसरखी कृष्ण कान्तिवाला छे, अथवा जे प्रभु मुख्य चिंतामणी रत्न सरखा छे, तथा लोकना [लोकालोकना] आलोकनथी [ ज्ञानथी ] हर्ष आपवा वडे मूर्तिमान् [ साक्षात् ] चन्द्र सरखा जागृत छे-प्रगट छ [संबंध अग्रे] ॥२॥
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