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अध्याय - २
[गति ] तिर्यंच, नरक, मनुष्य और देव - यह चार गतियाँ, [कषाय ] क्रोध, मान, माया, लोभ - यह चार कषायें, [लिंग] स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुसंकवेद - यह तीन लिंग, [मिथ्यादर्शन] मिथ्यादर्शन [ अज्ञान] अज्ञान [ असंयत] असंयम [ असिद्ध ] असिद्धत्व तथा [ लेश्याः ] कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म और शुक्ल - यह छह लेश्यायें, इस प्रकार [चतुः चतुः त्रि एक एक एक एक षड् भेदाः] 4+4+3+1+1+1+1+6=21, इस प्रकार सब मिलाकर औदयिकभाव के 21 भेद हैं।
(These are) the conditions of existence, the passions, sex, wrong belief, wrong knowledge, nonrestraint, non-attainment of perfection (imperfect disposition), and colouration, which are of four, four, three, one, one, one, one, and six kinds.
जीवभव्याभव्यत्वानि च ॥७॥
[ जीवभव्याभव्यत्वानि च ] जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व - इस प्रकार पारिणामिक भाव के तीन भेद हैं।
(The three are) the principle of life (consciousness), capacity for salvation, and incapacity for salvation.
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