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अध्याय - ९
विपरीतं मनोज्ञस्य ॥३१॥ [ मनोज्ञस्य ] मनोज्ञ पदार्थ सम्बन्धी [विपरीतं] उपरोक्त सूत्र में कहे हुए से विपरीत अर्थात् इष्ट-पदार्थ का वियोग होने पर उसके संयोग के लिये बारम्बार विचार करना सो 'इष्ट-वियोगज' नाम का आर्तध्यान है।
The contrary in the case of agreeable objects.
वेदनायाश्च ॥३२॥
[वेदनायाः च ] रोगजनित पीड़ा होने पर उसे दूर करने के लिये बारम्बार चिन्तवन करना सो वेदनाजन्य आर्तध्यान है।
In the case of suffering from pain also.
निदानं च ॥३३॥
[निदानं च ] भविष्यकाल सम्बन्धी विषयों की प्राप्ति में चित्त को तल्लीन कर देना सो निदानज आर्तध्यान है।
The wish for enjoyment also.
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