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अध्याय - ९
तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ॥३४॥
[तत् ] वह आर्तध्यान [अविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् ] अविरत - पहले चार गुणस्थान, देशविरत - पाँचवां गुणस्थान और प्रमत्त संयत - छठे गुणस्थान में होता है।
These occur in the case of laymen with and without small vows and non-vigilant ascetics.
हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः
॥३५॥ [हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यः ] हिंसा, असत्य, चोरी और विषय-संरक्षण के भाव से उत्पन्न हुआ ध्यान [ रौद्रम् ] रौद्रध्यान है; यह ध्यान [अविरतदेशविरतयोः ] अविरत और देशविरत (पहले से पाँच) गुणस्थानों में होता है।
Cruel concentration relating to injury, untruth, stealing, and safeguarding of possessions occurs in the case of laymen with and without partial vows.
आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम् ॥३६॥ [ आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय ] आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय के लिये चिन्तवन करना सो [धर्म्यम् ] धर्मध्यान है।
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