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सन्मति-तीर्थ
अन्मति-तीर्थ (१०) स्त्रीपरिज्ञा : एक प्रतिक्रिया : क्या भगवन आप भी !
- ज्योत्स्ना मुथा सूत्रकृतांग में विविध दार्शनिक और धार्मिक मान्यताओं का उल्लेख हैं । जैन दर्शन की रूपरेखा व्यवस्थित रूप से भले न बताई हो पर परिग्रह को सबसे कठोर बन्धन कहा है । उसे जानकर तोडने के लिए -
बुझिज्जत्ति तिउट्टिज्जा बंधणं परिजाणिया ।
किमाह बंधणं वीरो, किं वा जाणं तिउट्टई ।। इस गाथा से ही इस श्रुतस्कंध की शुरुआत की है । उपसर्ग, धर्म, समाधि, वैतालीय, कुशील, वीर्य अध्ययन में इसी बात पर जोर दिया है । पर बीच में ही 'स्त्री परिज्ञा' नामक अध्ययन में विशेषत: दूसरे उद्देशक में स्त्रीवृत्तियों का जो वर्णन किया है उसे पढकर एकाएक मुंह से निकला, 'क्या भगवन् आप भी !'
क्या आप वही भगवन् हो जिन्होंने स्त्रीदास्यत्व दूर किया । अपने संघ में साधु के साथ साध्वी को तथा श्रावकों के साथ श्राविकाओं को तीर्थ के रूप में स्थान दिया । चंदना को संघप्रमुखा बनाया । आप तो त्रिकालदर्शी हो । आप भूत, भविष्य
और वर्तमान अच्छी तरह से जानते थे । तो आप को ये सब पता है ना ? प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के समय बाहुबली को जगानेवाली ब्राह्मी सुंदरी जैसी बहने थी । भरत चक्रवर्ती अपने से दूर रहें इसलिए साठ हजार आयंबिल करनेवाली सुंदरीही थी। 'अंकुसेण जहा नागो' इस प्रकार रथनेमि को साधुत्व से भ्रष्ट होते हुए बचानेवाली राजीमती एक स्त्री ही थी । अपने शीलरक्षण के लिए अपनी जिह्वा खींचकर मरनेवाली चंदना की माँ धारिणी आपको पता थी । प्रकाण्ड पंडित आ. हरिभद्र को ज्ञान देनेवाली याकिनी महत्तरा एक स्त्री ही थी । जहाँ तक आपका
स्वयं का अनुभव है जब आपने दीक्षा ली तो मुँह से ऊफ तक न निकाला वह यशोदा कौन थी ? वह तो आपके साधनामार्ग में रुकावट बनी ऐसा हमने कहीं भी नहीं पढा । भगवन् ! आपके समय साधुओं से जादा साध्वियाँ और श्रावकों से जादा श्राविकाएँ थी । आज भी कोई अलग स्थिति नहीं है । वर्तमान में जप-तप करने में महिलाएँ ही आगे होती हैं । स्वाध्याय मंडळ नारियोंसेही सुशोभित हैं । इतना ही नहीं, जैन अध्ययन और अध्यापन करने में स्त्री वर्गही आगे है और उन्हें मार्गदर्शन करनेवाली एक प्रज्ञावान स्त्री ही है । ये तो आपने अपने ज्ञान से देखा ही होगा । फिर हमपर इतना अविश्वास क्यों ? इतनी शंकाएँ क्यों ?
भगवन् इस समाज को भी आप भलीभाँति जानते हो । जिसे कोई शास्त्र का ज्ञान भी नहीं है, पर उन्हें किसीने शास्त्र की बात बतायी, तो वह समाज बिना समीक्षा किये आँखें मूंदकर उसपर विश्वास करता है । तो आपने स्त्रीसंग को टालने को (परित्याग) कहा, वह समाज तो स्त्रीजन्म को ही टालने लगा और स्त्रीभ्रूण हत्या तक उसकी सोच जा पहुँची है । क्या दीनदयालु भगवन् को ये पसंद है ? मंजूर है ?
भगवन् मोहनीय कर्म का उदय तो सभी जीवों का होता है, तो सिर्फ स्त्री को ही दोषी क्यों ठहराया गया ? आपने तो मोक्ष अवेदी को बताया है, तो स्त्रीवेद, पुरुषवेद की बात ही कहाँ ? अनेकान्त के पुरस्कर्ता भगवन् आपने ऐसी एकान्त की बात कैसे की ? स्त्रीस्वभाव का इतना रंजक वर्णन !
उपसंहार :
नहीं, नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता ! अनन्तज्ञानी, अनन्तदर्शी, करुणा के अवतार, जिनकी एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के सभी जीवों के प्रति