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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय 122. The cause is certainly what is responsible for the smooth accomplishment of the result in this world; like the difference in the sweetness of milk or sugar will determine the level of desire (when sweetness is what one is looking for).
माधुर्यप्रीतिः किल दुग्धे मन्दैव मन्दमाधुर्ये । सैवोत्कटमाधुर्ये खण्डे व्यपदिश्यते तीव्रा ॥
(123)
अन्वयार्थ - (किल) निश्चय करके (माधुर्यप्रीतिः) मधुरता में प्रीति (मन्दमाधुर्ये दुग्धे ) मन्द मधुरता रखने वाले दूध में (मन्दा एव) मन्द ही है। (सा एव) वही मधुरता में प्रीति (उत्कटमाधुर्ये खण्डे ) अधिक मधुरता रखने वाली खाण्ड में (तीव्रा व्यपदिश्यते) तीव्र कही जाती है।
123. Certainly, a liking for milk, which is moderately sweet, would mean less desire for sweetness, and a liking for sugar, which is much sweeter, would mean greater desire for sweetness.
तत्त्वार्थाश्रद्धाने निर्युक्तं प्रथममेव मिथ्यात्वम् । सम्यग्दर्शनचौराः प्रथमकषायाश्च चत्वारः ॥
(124)
अन्वयार्थ - (तत्त्वार्थाश्रद्धाने) तत्त्वार्थ के अश्रद्धान करने में (मिथ्यात्वम् ) मिथ्यादर्शन (प्रथमम् एव) पहले ही (निर्युक्तं) नियत है (चत्वारः) चार (प्रथमकषायाश्च) प्रथम कषाय - अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ - भी (सम्यग्दर्शनचौराः) सम्यग्दर्शन के चुराने वाले हैं।
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