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पुरुषार्थसिद्धयुपाय 120. If that be so, there would be no difference (as regard himsā) between a cat and a young deer. No, it is not so. There is difference due to the degree of their infatuation.
हरिततृणांकुरचारिणि मन्दा मृगशावके भवति मूर्छा । उन्दरनिकरोन्माथिनि मार्जारे सैव जायते तीव्रा ॥ (121)
अन्वयार्थ - (हरिततृणांकुरचारिणि) हरे तृणों के अंकुरों को चरने वाले (मृगशावके) मृग के बच्चे में (मन्दा मूर्छा भवति) मन्द मूर्छा होती है (उन्दरनिकरोन्माथिनि) मूषों (चूहों) के समूहों को नष्ट करने वाली (मार्जारे) बिल्ली में ( सा एव तीव्रा जायते) वही मूर्छा तीव्र होती है।
121. Infatuation is mild in the young deer which grazes blades of green grass, and it is intense in the cat which annihilates a number of mice.
निर्बाधं संसिद्धयेत् कार्यविशेषो हि कारणविशेषात् । औधस्यखण्डयोरिह माधुर्यप्रीतिभेद इव ॥
(122)
अन्वयार्थ - (कारणविशेषात् ) कारण विशेष से (कार्यविशेषः) कार्य विशेष (हि) निश्चय से (निर्बाधं संसिद्धयेत् ) निर्बाध रीति से सिद्ध होता है (इह ) इस लोक में ( औधस्यखण्डयोः माधुर्यप्रीतिभेद इव) [औधस् नाम दूध वाले पशुओं के थनों के ऊपर दूध से भरे हुये भाग (ऐनरी) का है उस भाग में दूध पैदा होता है इसलिये औधस्य नाम दूध का है] दूध और खाण्ड दोनों की मधुरता में प्रीति का जिस प्रकार भेद देखा जाता है।
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