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पुरुषार्थसिद्धयुपाय
the other may have to experience only mild consequences on fruition (of karma) due to even major himsă committed by him.
एकस्य सैव तीव्रं दिशति फलं सैव मन्दमन्यस्य । व्रजति सहकारिणोरपि हिंसा वैचित्र्यमत्र फलकाले ॥
अन्वयार्थ
(सहकारिणोः अपि) दो पुरुषों के द्वारा साथ-साथ की गई भी (हिंसा) हिंसा (फलकाले ) फलकाल प्राप्त होने पर ( अत्र ) आत्मा में (वैचित्र्यम्) विचित्रता को ( व्रजति) प्राप्त होती है ( सा एव) वही हिंसा (एकस्य) एक जीव को (तीव्रं फलं ) तीव्र फल (दिशति ) देती है (सा एव ) वही हिंसा ( अन्यस्य ) दूसरे जीव को (मन्दम्) मन्द फल देती है।
53.
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When two persons commit the act of himsă jointly, its consequences on fruition (of karma), curiously enough, may be grave for one person and mild for the other.
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(53)
प्रागेव फलति हिंसा क्रियमाणा फलति फलति च कृताऽपि । आरभ्य कर्तुमकृताऽपि फलति हिंसानुभावेन ॥
(54)
अन्वयार्थ (प्राक् एव हिंसा फलति ) कोई हिंसा पहले ही फल देती है (क्रियामाणा फलति ) कोई हिंसा करते-करते फल देती है, ( कृता अपि फलति ) कोई हिंसा कर चुकने पर फल देती है, (च) और ( कर्तुम् आरभ्य ) कोई हिंसा आरंभ करके ( अकृता अपि ) बिना किये भी ( फलति ) फल देती है। (इति) इस प्रकार ( अनुभावेन ) भावों के अनुसार ( हिंसा फलति ) हिंसा फल देती है।
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