SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ८९ ॥ है स्वसंवेदनही भया सबकौं जाने, आपके जाने परका जानना थपै, स्वका जानना है है थपै है। परकी उपेक्षा आप है आपकी उपेक्षा पर है। विवक्षातै वस्तुसिद्धि है, ज्ञानतें स्वरूपानुभव है। यह अज्ञेयाधिकार लिखिये । “ज्ञातुं योग्यं ज्ञेयं " ज्ञेय है जानवेयोग्य पदार्थकौं कहिये । सो पदार्थकी तीन अवस्था हैं। द्रव्य अवस्था--३ है गुणअवस्था--पर्यायअवस्था ॥ द्रव्यअवस्था मुख्य है। काहेत? पदार्थ द्रव्यअवस्था है है न धरै तौ द्रव्यविना गुणपर्यायका व्यापना न होय, तब द्रव्य न होय, तब पदार्थ है न होय, तातें द्रव्यअवस्था मुख्य है । पीछे गुणअवस्था है। काहेत? गुणविना है द्रव्य न होय । तातें "गुणसमुदायो द्रव्यं" ऐसा जिनवचन है । पर्यायअवस्था न है हैं होय तो वस्तुकौं परणावै कुन ? । उत्पाद व्यय ध्रुव न सधै, षड्गुणी वृद्धिहानि न है हैं होय, तब अर्थपर्यायका अभाव भये, वस्तु अभाव होय, तारौं पर्यायअवस्थातें । है सर्वसिद्धि है ॥
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy