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॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ७४ ॥ णामजन्य निजारथ होय है। यौंकरि सम्यग्दृष्टिक ज्ञानदर्शनचारित्रसहित परिणाम है निजचित्तवस्तुहीकौं व्याप्यव्यापकरूप देखतें जानते आचरतें निजास्वाद लेय निजस्वाददशाका नाम स्वानुभव कहिये ।
स्वानुभव होतें निर्विकल्प सम्यक्ता उपजै। स्वानुभवकों कहौ वा कोई निर्विकल्पदशा कहौ, वा आत्मसन्मुख उपयोग कहौ, वा भावमति भावभुत कहौ, वा है स्वसंवेदनभाववस्तुमगन भाव वा स्वआचरण कहाँ, थिरता कहौ, विश्राम कहो, है स्वसुख कहौ, इन्द्रीमनातीत भाव , शुद्धोपयोगस्वरूप मम वा निश्चयभाव, स्वरससाम्य- है है भाव, समाधिभाव, वीतरागभाव, अद्वैतावलंबीभाव, चित्तनिरोधभाव, निजधर्म-है भाव, यथास्वादरूप यौकरि स्वानुभवके बहुत नाम हैं। तथापि एक स्वस्वादरूप अनु- है भवदशा मुख्यनाम जानना। जो सम्यग्दृष्टि चउथेका है। तिसकें तो स्वानुभवका है है काल लघु अंतर्मुहूर्तताई रहै है । वह काल पीछे होइ है । तिसते देशवतीका स्वानुभव है