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. ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ५९॥ परिणतिमें शुद्धनिश्चय भया। तब वैसाही वेद्या । शुद्धका निश्चय शुद्धपरमात्माकौं कारण है है।तातें शुद्धोपयोग साधक, परमात्मा साध्य है। निश्चय साध्य है सो कैसें तत्त्वश्रद्धानमैं है हैं है। याका हेय श्रद्धान । निजतत्त्वका उपादेय श्रद्धान तत्त्वज्ञानमैं परतत्त्वका रूप हेय है जान्या, निजतत्त्व उपादेय जान्या । भवभोगादिविरति कार्यकारी जानी । सम्यक्त्वाहै चरणरीति उपादेय जानी। ऐसा व्यवहार तत्त्वसौं मिल्या विचार हेय उपादेयांका है सम्यग्भेदकौं लीये है। इस व्यवहारकै होतै निजसम्यक्स्वरूपकौं मन इन्द्रिय उपयोग है निरोधि शुद्ध अनुभवै । निजश्रद्धान सिद्धसमान स्वरूपका करै । तत्त्व सातका भेल नहीं। निजशुद्धतत्व अनुभवगोचर करै। निश्चयकरि श्रद्धानमैं आपकौं परमात्मा शुद्ध है । । है निश्चयकरि ज्ञान परमात्माका जानपणा केवलज्ञान जातितें जानै । स्तोक सम्यग्ज्ञानतें है सब सम्यग्ज्ञानकौं प्रतीतिमैं जानै । स्वसंवेदमैं जातिरूपकरि अपना स्वरूप केवलज्ञानमैं है ठीक जान्या। थोरे ज्ञानमैं बहुत ज्ञानकी प्रतीति आई। निश्चयकरि स्वरूप जान्या है