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________________ • ॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ११७॥ र्गस्वरूपकौं । अनुभव यह शिवपद स्वरूपकौं, अनुभव त्रिभुवनसार, अनुभव कल्याण है अनंत, अनुभव महिमाभण्डार, अनुभव अतुलबोधफल, अनुभव स्वरसरस , अनुभव है १ स्वसंवेदन, अनुभव तृप्तिभाव , अनुभव अखण्डपद सर्वस्व , अनुभव रसास्वाद, अनुभव है हैं विमलरूपं, अनुभव अचलज्योतिरूप प्रगटकरण, अनुभव अनुभवके रसमैं अनंत है है गुणकार रस है, पंचपरमगुरु अनुभवतै भये होंहिगे। अनुभवसौं लगेगे। सकलसंत है है महंत भगवंत तातें जे गुणवंत हैं, ते अनुभवकौं करौ। सकलजीवराशि अनुभवौ । स्वरूपकौं । यह अनुभवपंथ निरगंथ साधि साधि भगवंत भये ।। _ परिग्रहवंत सम्यग्दृष्टिहू अनुभवकौं कबहू कबहू करै हैं, तेहू धन्य हैं । मुक्तिके साधक हैं।जा समय स्वरूप अनुभव करै है, ता समय सिद्धसमान अमलान आत्मतत्त्वकौं अनुभवै है । एकोदेशस्वरूप अनुभवमैं स्वरूप अनुभवकी सर्वस्वजाति पहचानीहै । अनुभव । पूज्य है, परम है, धर्म है, सार है, अपार है, करत उधार है, अविकार है, करै भवपार है
SR No.009865
Book TitleAnubhav Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhmichand Venichand
PublisherLakhmichand Venichand
Publication Year
Total Pages122
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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