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गया कि ईश्वर और उसके पैगम्बर में विश्वास करो और यह मत कहो कि तान हैं, क्षमाशील बनो क्योंकि यह तुम्हारे लिए अच्छा है। ईश्वर केवल एक ही है। यह उसकी महिमा के योग्य नहीं है कि उसके पुत्र हो' और जब ईश्वर कहेगा कि प्रो जीसस, मेरी के पुत्र, क्या तुमने मनुष्यों से यह कहा है कि मुझे
और मेरी माता को ईश्वर के अतिरिक्त दो अन्य ईश्वर मानो तो वह कहेगा कि आपकी जय हो, मैं वह कैसे कह सकता हूँ जिसे मैं सत्य नहीं समझता ।
मुसलमानों ने ईश्वर में निम्न सात गुण माने हैं-जीवन (हाया), ज्ञान (इल्म), शक्ति (कुद्र), इच्छा (इरादा), श्रवण (सम), दर्शन (बशर) और वचन (कलाम) । जिस प्रश्न से हम यहाँ सम्बद्ध हैं उस प्रश्न का दृष्टि से इन गुरणों को मानने या न मानने से कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता।
ईश्वर की कल्पना के पीछे मूल भावना यह है कि हर कर्म का कोई न कोई कर्ता होना चाहिए। अतः इस विश्व का भी एक कर्ता है। इस युक्ति को जैन दर्शन सुसंगत नहीं मानता । प्रश्न यह है कि ईश्वर ने इस संसार को सत् से उत्पन्न किया या असत् से? असत् से तो किसी पदार्थ की उत्पत्ति हो नहीं सकती और यदि यह मानें कि सत् से संसार को उत्पन्न किया तो यह प्रश्न आएगा कि ईश्वर ने एक विशेष समय में संसार को जन्म देने की इच्छा क्यों की? जैसाकि सांख्यतत्त्वकौमुदी में कहा गया है कि ईश्वर का सृष्टि में स्वयं का तो कोई स्वार्थ हो नहीं सकता क्योंकि वह पूर्ण है और यदि उसने संसार को परोपकार की दृष्टि से उत्पन्न किया तो सृष्टि के पूर्व आत्माओं को कोई कष्ट तो था नहीं, जिससे मुक्त करने के लिए उसने ऐसा किया हो और फिर परोपकार की दृष्टि से संसार का सृजन करने वाला केवल सुखमय संसार ही बनाता ।४ ऐपीक्यूरस का उभयतःपाश अभी भी हमारे साथ है, 'यदि ईश्वर बुराई को होने देना चाहता है तब तो वह द्वेषी है और यदि वह बुराई को नहीं होने देना चाहता किन्तु इसे रोक नहीं सकता, तो वह सर्वशक्तिमान नहीं है।
ईश्वर ने संसार को जिन सत् पदार्थों से बनाया, वे सत् पदार्थ तो अनादि काल से चले ही आते हैं और वे स्वयं ही संसार को भी अनादिकाल से जन्म
१. Hastings, James, Encyclopaedia of Religion and Ethics, ____Vol. VI, पृ० २६१. २. वही, प० ३००. ३. वही, पृ० ३००. ४. सांख्यतत्त्वकौमुदी, सांख्यकारिका, ५०. %. W.R. Sorley and others, The Elements of Pain and Conflict
in Human Life, पृ०४८.