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बाह्वारम्भपरिग्रहत्वं नारकस्यायुषः।१५।। बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह रखना नरकाय के आश्रव का कारण है।
माया तैर्यग्योनस्य।।६।। माया (छलकपट) तिर्यंचायु के आश्रव का कारण है।
अल्पारंभपरिग्रहत्वं मानुषस्य।१७।। थोड़ा आरम्भ और थोड़ा परिग्रह मनुष्य आयु के आश्रव का कारण है।
स्वाभावमार्दवं च।।८।। स्वाभाविक कोमलता भी मनुष्याय के आश्रव का कारण है।
निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् ।।९।। दिग्व्रत, देशव्रत आदि सात शील तथा अहिंसा आदि पाँचो व्रतों को धारण नहीं करना चारों गतियों के आश्रव का कारण
सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जरा
___ बालतपांसिदैवस्य॥२०॥ सरागसंयम, संयमासंयम (देशविरति), अकाम निर्जरा बालतप ये देवायु के आश्रव के कारण हैं।
और
सम्यक्तवं च।।२१।। और सम्यग्दर्शन भी देवायु का कारण है।
योगवक्रता विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः।।२२।।