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तीब्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्तद्विशेषः ।।६।।
तीव्र भाव, मंद भाव, ज्ञात भाव अज्ञातभाव, अधिकरण और वीर्य्य की विशेषता से उस आश्रव में विशेषता अर्थात् न्यूनाधिकता होती है।
अधिकरणं जीवा जीवाः ॥ ७ ॥
आश्रव का आधार जीव और अजीव दोनों हैं।
आद्यं संरम्भसमारंभारंभयोगकृतकारितानुमतकषाय विशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः।।८।। पहिला जीवाधिकरण समारम्भ (हिंसादि करने का संकल्प), समारम्भ (हिंसादि कार्यों का अभ्यास), (हिंसादि में प्रवृत हो जाना), से तीन प्रकार का है। प्रत्येक के मन, वचन और काययोग की अपेक्षा तीन तीन भेद होते हैं (३ x ३ = ९) तथा प्रत्येक के कृत (स्वयं करना), कारित (दूसरों से कराना) और अनुमति (किये कार्य की प्रशंसा करना) इसप्रकार प्रत्येक के तीन तीन भेद फिर होते हैं अतः (९x३ = २७) भेद हुए । हर एक के क्रोध, मान, माया, लोभ के भेद से ये चार चार भेद होते हैं। इसलिए कुल मिलाकर (२७x४ = १०८) भेद हुए ।
निर्वर्तनानिक्षेपसंयोगनिसर्गा
द्विचतुर्द्वित्रिभेदाः परम।।९।।
दूसरे जीवाधिकरण - के निर्वर्तना के दो (मूल गुण निर्वर्तना और उत्तरगुण निर्वर्तना), निक्षेपाधिकरण के चार (सहसा, अनाभोग दुष्प्रमार्जित और अप्रत्यवेक्षित, संयोगाधिकरण के दो ( उपकरण और भक्तापन) और निसर्गाधिकरण के तीन (मन, वचन और काय भेद हैं।