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________________ अवसर्पिणी काल चतुर्थकाल- ४२ हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागर पंचमकाल- २१ हजार वर्ष षष्ठमकाल- २१ हजार वर्ष उतसर्पिणी काल षष्ठमकाल- २१ हजार वर्ष पंचमकाल - २१ हजार वर्ष चतुर्थकाल - ४२ हजार वर्ष मक एक कोड़ा कोड़ी अध्याय ५ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः । ।१ ।। धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल ये चार द्रव्य अजीवकाया अर्थात् अचेतन और बहु प्रदेशी पदार्थ हैं। द्रव्याणि ॥ २ ॥ ये चारों पदार्थ द्रव्य हैं। जीवाश्च ॥३॥ जीव भी अचेतनों से पृथक् द्रव्य हैं। नित्यावस्थितान्यरूपाणि ॥ ४ ॥ ये द्रव्य नित्य (कभी नष्ट नहीं होनेवाले), अवस्थित (संख्या में घटने बढ़ने से रहित) और अरूपी हैं।
SR No.009849
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size1 MB
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