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पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु।।२२।।
दो युगलों में और शेष के समस्त विमानों में क्रम से पद्म और शुक्ल लेश्या होती है।
प्राग्ग्रैवेयकेभ्य: कल्पाः ।।२३।।
ग्रैवेयकों से पहिले पहिले के स्वर्ग कल्प संज्ञा वाले अर्थात् इंद्रादिक भेद वाले हैं।
ब्रह्मलोकालया लौकान्तिकाः।।२४।। जो पाँचवें ब्रह्म स्वर्ग के अन्त में रहते हैं वे लोकान्तिक देव
सारस्वतादित्यवन्हयरुणगर्दतोयतुतिषताव्याबाधारिष्टाश्च।।२५।।
सारस्वत, आदित्य, बहिन, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध और अरिष्ट ये आठ प्रकार के लौकन्तिक देव होते हैं।
विजयादिषु द्विचरमाः।।२६।।
विजयादिक चार विमानों में देव द्विचरम अर्थात् मनुष्य के दो जन्म लेकर मोक्ष जाते हैं। सर्वार्थसीद्धि के देव एक भवावतारी होते हैं।
आपेपादिक मनुष्यः शषास्तियग्योनयः।।२७।। देव, नारकी और मनुष्यों के अतिरिक्त शेष सब जीव तिर्यच
स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणाम् सागरोपमत्रिषल्योपमार्द्ध हीनमिता:।।२८॥