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पहला गुलाम बोला – 'यह औरत सोती हुई कैसी बदशक्ल लगती है । इसका मुँह देखो कैसा लटका हुआ है; सांस तो ऐसे ले रही है मानो शैतान उसका हलक़ दबोच रहा हो ।'
इसपर बिल्ली बोली - 'यह सोती हुई इतनी बदशक्ल नहीं लगती जितने तुम जगे हुए गुलाम लगते हो ।'
दूसरा गुलाम बोला- 'कोई बुरा ख्वाब देख रही मालूम होती हैं ।' बिल्ली बोली - 'क्या ही अच्छा हो कि तुम भी सोकर अपनी आज़ादी के बाब देखो ।
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तीसरा गुलाम बोला- ' शायद अपने क़त्ल किये हुए लोगोंका जुलूस देख रही है ।'
बिल्ली बोलो - 'हाँ, तुम्हारे पुरखों और तुम्हारी सन्ततिका जुलूस देख रही है ।'
चौथा गुलाम बोला- ' इसकी चर्चा करते हुए भी, मुझे तो खड़े-खड़े पंखा झलनेमें कंटाला आता है ।'
बिल्ली बोली - ' क़यामत तक तुम तो पंखा ही झलते रहोगे; क्योंकि जैसा यह-लोक वैसा ही वह लोक है ।'
इस वक़्त रानीका सिर हिला, और उसका ताज ज़मीनपर गिर पड़ा ।
एक गुलाम बोला- 'यह तो अपशकुन है ।'
बिल्ली बोली- 'एकका अपशकुन दूसरेका शुभ शकुन है ।'
दूसरा गुलाम बोला- 'अगर यह जाग गई और अपने ताजको गिरा हुआ देख लिया, तो हमें मार ही डालेगी ।'
बिल्ली बोली - 'तुम्हारे जन्मसे ही वह तुम्हें रोज़ मारती आ रही है और तुम्हें इसकी खबर भी नहीं ।'
तीसरा गुलाम बोला- 'हमें मार डालेगी और कहेगी कि देवताओंको बलि चढ़ा दी ।'
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सन्त-विनोद