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बहुत देर बाद पठ्ठला मेंढक बोला-'सचमुच यह बड़ा ही अजीब लट्ठा है । यह तो ज़िन्दोंकी तरह चलता है। ऐसा लट्ठा पहले किसीने नहीं देखा।' ___ तब दूसरा मेंढक बोला-'नहीं, मेरे दोस्त, यह लट्ठा और लट्ठों जैसा ही है। यह नहीं चल रहा । चल तो नदी रही है समन्दरकी ओर, और हमें और लट्रेको अपने साथ लिये जा रही है।'
तीसरा मेंढक बोला-'न तो लट्टा चल रहा है और न नदी । गति तो हमारी विचारकतामें है। क्योंकि विचारके बगैर कोई चीज़ नहीं चलती।'
तीनों मेंढक इस बातपर झगड़ने लगे कि चल दरअसल कौन-सी चीज़ रही है । झगड़ा अधिकाधिक गर्मी और ज़ोर पकड़ता गया, लेकिन वे सहमत न हो सके।
तब उन्होंने चौथे मेंढककी ओर देखा, जोकि अबतक ध्यानसे सब सुन रहा था मगर शान्त था और उन्होंने उसकी राय मांगी।
चौथा मेंढक बोला-'तुममेंसे हर एक ठीक है, ग़लत कोई नहीं। गति लढेमें है और पानीमें है और हमारे विचारमें भी है।' ___ इसपर तीनों मेंढकोंको बड़ा गुस्सा चढ़ा, क्योंकि कोई यह बात माननेके लिए तैयार नहीं था कि उसीकी बात पूर्ण सत्य नहीं है और यह कि बाक़ी दोनोंकी बात सर्वथा मिथ्या नहीं है।
तब अजीब बात हुई तीनों मेंढक मिल गये और उन्होंने चौथे मेढकको ढकेलकर नदीमें गिरा दिया।
शेरकी बेटी एक बूढ़ी रानी अपने सिंहासनपर सोई हुई थी। चार गुलाम खड़े हुए उसे पंखा झल रहे थे और वह खुर्राटे ले रही थी। रानीकी गोदमें एक बिल्ली पड़ी लापरवाहीसे गुलामोंकी तरफ़ घूर रही थी। सन्त-विनोद