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सिकन्दर हतप्रभ होकर बोला-'आपके नामकी तो बड़ी धूम मची हुई है । कहिए मैं आपकी क्या सेवा करू ।'
शान्त गौरवके साथ सन्त बोला-'सिर्फ़ हटकर खड़े हो जाओ और मूरजको धूप मेरे ऊपर आने दो।'
पापी कौन ? एक वार आदमीके शरीर और आत्मामें बहस छिड़ गई। शरीर तमक कर बोला- 'मैं तो जड़ हूँ-मिट्टीका पिण्ड ! मोह पैदा करनेवाली चीज़ोंको देख भी नहीं सकता। फिर भला मैं पाप कैसे कर सकता हूँ ?'
आत्मा कैसे चुप रहती? बोली--'मेरे पास पाप करनेके साधन ही नहीं हैं, मैं पाप कैसे कर सकती हूँ ? इन्द्रियोंके बिना भी कोई काम हो सकता है क्या ?'
भगवान्ने सुना तो मुसकरा पड़े और बोले.- 'सचमुच तुम दोनों बराबर जिम्मेदार हो ! शरीरके कन्धों पर जब आत्मा आ बैठती है, तब दोनोके सहकारसे ही पापका जन्म होता है।'
-टॉलस्टॉय
ताकत 'ईश्वरको ताक़त ज्यादा है या शैतानको ?' 'ईश्वरकी।' _ 'अगर ईश्वरकी ताक़त ज़्यादा है तो शैतान ईश्वरकी हर चीज़ विगाड़ कैसे देता है ?' ' 'एक अच्छी मूर्ति बनानेमें कितना वक़्त लगता है ? मगर उसे तोड़ने में ? एक महात्मा किसी आदमीको दस वर्षमें जितना सुधार पायेगा, एक दुरात्मा दम दिनमें उसे उससे ज्यादा भ्रष्ट कर देगा, किसीकी ताक़तका अन्दाज़ा बिगाड़नेसे नहीं, बनानेसे लगता है ।'
-सत्यभक्त
सन्त-विनोद