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ब्रह्मका अनुभव करनेवाले भी उसमें इसी तरह ग़र्क़ हो जाते हैं । समाधिमें होनेवाली ब्रह्मानुभूति मन और वाणीसे परे है, इसलिए उसका वर्णन नहीं हो सकता ।
अपरम्पार लीला
भीष्म अपनी शरशय्यापर पड़े हुए थे । पाण्डव और कृष्ण उनके पास खड़े थे । उन्होने भीष्मकी आँखोंसे आँसू निकलते देखे । अर्जुनने कृष्णसे पूछा - 'विचित्र बात है कि भीष्मपितामह सरीखे ज्ञानी और संयमी वीरात्मा भी मायावश मृत्युके समय रो रहे हैं !' श्रीकृष्णने भीष्मसे इसका कारण पूछा । भीष्म बोले- ' कृष्ण ! तुम भलीभाँति जानते हो कि यह मेरे रोने का कारण नहीं है । मुझे ख्याल आया कि स्वयं भगवान् जिन पाण्डवोंके सारथी हैं उनकी विपदाओंका अन्त ही नहीं है । इससे मुझे लगा कि मैं ईश्वरकी लीलाको कुछ भी न समझ सका, इसीलिए मेरे आँसू बहने लगे ।'
शिक्षण
किसीने लुकमानसे पूछा - ' आपने तमीज़ किससे सीखो ?' उसने जवाब दिया—' बदतमीज़ोंसे । क्योंकि मैंने उन लोगोंमें जो कुछ बुरी बात देखी उससे परहेज़ किया । अक्लमन्द खेलसे भी शिक्षा प्राप्त कर लेता है । बेवकूफ़ हिक़मतको सौ बात सुन लेनेपर भी खेल और बेवक़ूफ़ी हो सीखता है ।'
धर्मवेशी लुटेरे
एक सुनारने जवाह्रातकी दुकान खोल रक्खी थी । देखने में वह बड़ा धर्मात्मा लगता था -- माथेपर तिलक, गलेमें माला, हाथमें सुमिरनी । इस
सन्त-विनोद
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