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बुलन्दी
कवीन्द्र रवीन्द्रकी बढ़ती हुई ख्यातिसे कुछ लोग बेहद जलने लगे । उन्होंने अपने हृदयकी कलुषता पत्र-पत्रिकाओंमें बखेरनी शुरू कर दी । लेकिन टैगोर समभाव से सब सहन करते रहे ।
शरच्चन्द्रसे जब ये कटु आलोचनाएँ न सुनी गई तो उन्होंने विश्वकविसे कहा कि वे इन आलोचकोंका मुँह बन्द करनेका कुछ उपाय करें । टैगोर शान्तभाव से बोले
'उपाय क्या है शरत् बाबू ? जिस शस्त्रको लेकर वे लोग लड़ाई करते हैं, उस शस्त्रको मैं हाथसे छू भी नहीं सकता ।'
कृष्णकी पसन्द
धर्मराज युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें कृष्ण भी गये थे । कहने लगे'मुझे भी काम दो ।' धर्मराजने कहा, 'आपको क्या काम दें ! आप तो हमारे लिए आदरणीय है । आपके लायक़ हमारे पास कोई काम नहीं है ।' भगवान् ने कहा कि, 'मैं आदरणीय हूँ तो क्या अयोग्य भी हूँ ? मैं भी काम कर सकता हूँ ।' धर्मराज बोले- ' आपही अपना काम ढूँढ़ लीजिए ।' तो भगवान् ने क्या काम लिया ? — जूँठो पत्तलें उठानेका और लीपनेका !
- विनोबा
नमककी गुड़िया
एक बार एक नमककी गुड़िया समन्दरकी थाह लेने गई ताकि औरोंको पानीकी गहराई बता सके । लेकिन समन्दर में पहुँचकर वह खुद ही घुलकर खत्म हो गई ।
सन्त-विनोद
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