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नासिरुद्दीन सुलतान नासिरुद्दीन बड़ा धर्मनिष्ठ और स्वावलम्बी था। वह राजकोषसे कुछ भी न लेकर हाथसे किताबोंकी नक़लें तैयार करके गुज़र करता था । रसोई भी बेगमको खुद बनानी पड़ती थी । एक रोज़ उसने बादशाहसे प्रार्थना की-'खाना पकानेमें मेरी उँगलियाँ झुलसती हैं, एक नौकरानी तो रख दीजिए।' बादशाह बोले-खज़ानेपर मेरा कोई अधिकार नहीं, वह तो प्रजाकी सम्पत्ति है । और मेरी हाथकी सीमित कमाईमें नौकरानी कैसे रक्खी जा सकती है ?'
हरीच्छा अत्याचारी रोमन सम्राट् नीरोका ज़माना था। तब एग्रीपीनस नामका एक सत्यवादी, निर्भीक वीर रहता था। वह बड़ा ही सहनशील और आनन्दी स्वभावका था । ___कई दिनके बाद उसे खाना नसीब हुआ। अपने मित्रके साथ बैठकर खाना शुरू ही करनेवाला था कि दरवाज़ा खोलकर नीरोके सिपाही घुस आये।
सिपाहियोंकी टुकड़ीका सरदार बोला-'एग्रीपीनस ! सम्राट् नीरोने तुम्हें सज़ा दी है।'
'काहेकी ? मौतकी ?' 'नहीं, देशनिकालेकी ।' 'शुक्र है खुदाका । पर ज़रा ठहर सकोगे ? मैं खाना खा लूँ।'
'मुझे अफ़सोस है ! नीरोका हुक्म है कि तुम्हें फ़ौरन् अफ़रीक़ा भेज दिया जाय।
'तो चलो, अफ़ीरीक़ा चलकर जीमेंगे । यही ईश्वरकी मर्जी होगी।' एग्रीपीनस हँसते हुए बोला।
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सन्त-विनोद