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________________ महात्माने कहा-पन्द्रह दिन बाद इसे मेरे पास लाना, तब उपाय करूंगा।' पन्द्रह दिन बाद लड़का फिर लाया गया। महात्माजीने उससे प्यारसे कहा--'बेटा, अब गुड़ कभी न खाना ।' उसी दिनसे लड़केने गुड़ खाना छोड़ दिया। एक रोज़ लड़केके पिताने महात्माजीसे कहा-'अब वह गुड़ क़तई नहीं खाता । आपके उपदेशने जादूका-सा काम किया। लेकिन कृपया इस बातका रहस्य बताइए कि आपने वह उपदेश उसी दिन न देकर पन्द्रह दिन बाद क्यों दिया ?' महात्माने हँसकर कहा-'भाई, जो स्वयं आचरण न करे उसे उपदेश देनेका अधिकार नहीं है। उसके उपदेशका असर नहीं होता। उस वक्त मैं खुद गुड़ खाता था। स्वयं त्यागके दृढ़ हो जानेके बाद मैंने उसे त्यागका उपदेश दिया।' असाधु एक साधु किसी नदीके किनारे ध्यानावस्थित थे। पास ही एक धोबी कपड़े धो रहा था। दुपहरको खाना खाने घर जाते वक़्त धोबीने साधुसे कहा-'अरे ओ गुमसुम ! ज़रा मेरे गधोंको देखते रहना। मैं अभी आया रोटी खाकर घंटा भरमें ।' धोबी लौटा तो एक गधा कम पाया। वह चरते-चरते किसी नीची जगह चला गया था और नज़र नहीं आता था । धोबीने साधुको ललकारा। बुरा-भला कहा। गाली-गलौज दी। भिड़ भी पड़ा । साधुसे जब बरदाश्त न हुआ तो उसे भी ताव चढ़ आया। अब क्या था ! दोनोंसे गुत्थमगुत्थ होने लगी। धोबी बलवान् था। उसने साधुको पछाड़ दिया और सीनेपर चढ़ बैठा । सन्त-विनोद
SR No.009848
Book TitleSant Vinod
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarayan Prasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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