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अध्याय - 3
पुद्गल द्रव्य पररूप परिणमन नहीं करता
ण विपरिणमदि ण गिण्हदि उप्पज्जदि ण परदव्वपज्जाए । पोंग्गलदव्वं पि तहा परिणमदि सगेहि भावेहिं ॥
(3-11-79)
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पुद्गल द्रव्य भी परद्रव्य की पर्यायों में उस रूप न तो परिणमन करता है, न उन्हें ग्रहण करता है, न उन रूप उत्पन्न होता है, क्योंकि वह तो अपने ही भावों से परिणमन करता है।
The physical matter too does not manifest itself in the modes of any foreign substance, or assimilate them, or transmute in their form, because it manifests in its own state or form.
जीव और पुद्गल के परिणामों में निमित्त - नैमित्तिक भाव है जीव परिणामहेदुं कम्मत्तं पोंग्गला परिणमति । पग्गलकम्मणिमित्तं तहेव जीवो वि परिणमदि ॥
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(3-12-80)
ण विकुव्वदि कम्मगुणे जीवो कम्मं तहेव जीवगुणे । अण्णॉण्णणिमित्तेण दु परिणामं जाण दोन्हं पि ॥
एदेण कारणेण दु कत्ता आदा सगेण भावेण । पोंग्गलकम्पकदाणं ण दु कत्ता सव्वभावाणं ॥
(3-13-81)
(3-14-82)
पुद्गल जीव के ( रागादि) परिणाम के निमित्त से कर्म रूप से परिणमित होते हैं। इसी प्रकार जीव भी (मोहनीय आदि) पुद्गलकर्म निमित्त से (रागादि भाव रूप से)