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अध्याय -8
made you miserable? If all living beings become miserable or happy due to the fruition of karmas, and since they do not give you karmas, how have they made you happy?
मरण और दु:ख कर्मोदय से होता है -
जो मरदि जो य दुहिदो जायदि कम्मोदयेण सो सव्वो। तम्हा दु मारिदो दे दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा॥
(8-21-257)
जो ण मरदि ण य दुहिदो सो वि य कम्मोदयेण खलु जीवो। तम्हा ण मारिदो णो दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा॥
(8-22-258)
जो मरता है ओर जो दुखी होता है, वह सब कर्म के उदय से होता है; इसलिए मैंने अमुक को मार दिया और मैंने अमुक को दुखी किया' ऐसा तेरा अभिप्राय क्या वास्तव में मिथ्या नहीं है? जो न मरता है और न जो दुखी होता है, वह जीव भी वास्तव में कर्म के उदय से ही होता है। इसलिए इसे मैंने नहीं मारा और इसे मैंने दुखी नहीं किया' ऐसा तेरा अभिप्राय क्या मिथ्या नहीं है?
If one dies or becomes miserable, all this is due to the fruition of karmas. Therefore, your view that you have killed or caused suffering to somebody, is it not erroneous?
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