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अध्याय -8
जीव कर्म के उदय से दुखी-सुखी होते हैं -
कम्मोदयेण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे। कम्मं च ण देसि तुमं दुक्खिदसुहिदा किह कदा ते॥
(8-18-254)
कम्मोदयेण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे। कम्मं च ण दिति तुमं कदोसि किह दुक्खिदो तेहिं॥
__(8-19-255)
कम्मोदयेण जीवा दुक्खिदसुहिदा हवंति जदि सव्वे। कम्मं च ण दिति तुमं किह तं सुहिदो कदो तेहिं॥
(8-20-256)
यदि कर्म के उदय से सब जीव दुखी और सुखी होते हैं और तू उन्हें कर्म तो देता नहीं है, तब वे जीव तूने दुखी और सुखी किस प्रकार किये। यदि सभी जीव कर्म के उदय से दुखी और सुखी होते हैं और वे तुझे कर्म देते नहीं, तब तुझे उन जीवों ने किस प्रकार दुखी किया। यदि सभी जीव कर्म के उदय से दुखी और सुखी होते हैं और वे जीव तुझे कर्म तो देते नहीं हैं, तब उन्होंने तुझे सुखी कैसे किया।
If all living beings become miserable or happy due to the fruition of karmas, and since you do not give them karmas, how have you made them miserable or happy? If all living beings become miserable or happy due to the fruition of karmas, and since they do not give you karmas, how have they
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